आज बहुत व्यथित मन से कुछ बातें आप सबके सामने रख रहा हूंँ इन बातों पर विचार जरूर करिए
🔴शिक्षामित्रों को लूटने वाले नेता आज शिक्षामित्रों के बुरे दौर में उनका साथ छोड़ चुके हैं।
🔴शिक्षामित्र के विभिन्न संघ के नेताओं ने केवल अपना पेट भरने का तरीका अपनाकर शिक्षामित्रों को लूटने का काम किया है उनके जख्मों पर मरहम लगाने का नहीं।
🔴क्या कारण है कि जहांँ एक आम शिक्षा मित्र अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पा रहा है वहीं शिक्षा मित्र संघ के अधिकांश नेताओं के पास चार पहिया गाड़ी है और अच्छा सा एक मकान है एवं उनका जीवन आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस है।
🔴 यह सब बातें दिखाती हैं कि हमारे संघ के नेताओं ने केवल अपना पेट भरने का जुगाड़ किया है शिक्षामित्रों की लड़ाई को लड़ने का नहीं।
🔴 अब आते हैं 👇सरकार की तरफ से दिए गए झूठे दिलासे की ओर
🔴 जब हमारा समायोजन 12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट से रद्द हुआ था उस समय माननीय प्रधानमंत्री जी ने बनारस की धरती से एक सभा में कहा था कि शिक्षामित्रों की जिम्मेदारी मेरी है शिक्षामित्रों को परेशान होने की जरूरत नहीं है कोर्ट का ऑर्डर आने दीजिए, ऑर्डर का अध्ययन करने दीजिए, उत्तर प्रदेश सरकार को समय दीजिए, मैं उत्तर प्रदेश सरकार से बात करूंँगा, मुझे नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश सरकार आपके साथ अन्याय करेगी, बहुत सारे रास्ते हैं आत्महत्या का रास्ता छोड़िए और अपने परिवार में खुश रहिए।
🔴 विधानसभा 2017 के चुनावी सभाओं के दौरान तत्कालीन सांसद गोरखपुर एवं वर्तमान में मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश श्री योगी जी महाराज ने कहा था कि शिक्षामित्रो को अपनी लड़ाई को और तेज गति प्रदान करने की जरुरत है, इस आंदोलन को तेज धार देने की जरूरत है, हम शिक्षा मित्रों के साथ हैं और इस लड़ाई को सड़क से सदन तक लड़ने के लिए तैयार हैं। बहुत सारे रास्ते हैं, बहुत सारे विकल्प है, लेकिन आज जब वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तब यह सब बातें उन पर लागू नहीं होती और उन्हें सारे रास्ते शिक्षामित्रों के लिए बंद नजर आते हैं ।
🔴 विधानसभा 2017 के दौरान तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी श्री अमित शाह जी ने शिक्षामित्रों की समस्याओं का 3 महीने में स्थाई रूप से समाधान करने की बात कही थी लेकिन अभी तक उनका 3 महीना भी नहीं पूरा हुआ।
🔴 उपरोक्त बातों से स्पष्ट होता है कि शिक्षामित्र संघ के नेताओं से लेकर सभी राजनेताओं तक ने केवल शिक्षामित्रों की लाशों पर राजनीति की है चाहे वह वोट की राजनीति हो चाहे वह चंदा इकट्ठा करके अपना पेट भरने की कुटिल चाल हो
🔴 आज जब 69000 शिक्षक भर्ती का आर्डर हमारी उम्मीदों से परे आया है तथा सभी शिक्षामित्र साथी एक गहरे अवसाद में जा चुके हैं और आए दिन चार - पांँच शिक्षामित्रों की मौत हो रही है ऐसे में कोई भी शिक्षामित्रों के इस दुख के समय में उनका सहारा बनने को तैयार नहीं है।
🔴 ऐसा लगता है जैसे शिक्षामित्र समुदाय इस देश का इस प्रदेश का नागरिक ही ना हो और चुनी हुई सरकार के कर्तव्य शिक्षा मित्रों के प्रति गंभीर ना हो।
🔴 चुनी हुई सरकार का प्रतिनिधि राजा के समान होता है जिसके कंधों पर अपनी समस्त प्रजा की रक्षा करने का उत्तरदायित्व होता है लेकिन वर्तमान समय में सरकार शिक्षा मित्रों के प्रति असंवेदनशीलता ही दिखा रही है जिसे कहीं से भी ठीक नहीं कहा जा सकता है।
🔴 यहांँ पर मैं निवेदन 🙏करना चाहूंँगा माननीय प्रधानमंत्री जी से, माननीय तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष वर्तमान में गृह मंत्री अमित शाह जी से, माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी जी से कि बीते समय में शिक्षामित्रों के लिए अपने मुख मंडल से कही गई बात को सही साबित करने के लिए ठोस कदम उठाते हुए हम असहाय शिक्षामित्रों के जीवन को जीने के लायक बनाने का काम करें और हमारे लिए कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकालें।
(690000 शिक्षक भर्ती की आर्डर के संबंध में कुछ बातें)
🔴 साथियों निम्न👇 बातों पर गौर करिए
🔴 68500 की भर्ती में मूल विज्ञापन बहाल हुआ और बाद में लगाया गया 30-33 कोर्ट ने अमान्य कर दिया जिसका तर्क था कि खेल के बीच में खेल के नियम नहीं बदले जा सकते हैं वही 69000 में खेल के बीच में खेल के नियम बदलते हुए परीक्षा के बाद 60-65 पासिंग मार्क लगाया गया जो की पूरी तरह से गलत है फिर भी कोर्ट ने इसे सही माना।
🔴 हिमाचल प्रदेश के एक केस में भूतलक्षी संशोधन को 69000 शिक्षक भर्ती के पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा अमान्य किया गया तो 69000 शिक्षक भर्ती में भूतलक्षी संशोधन को मान्य कैसे किया गया।
🔴 B.Ed जिन्हें योग्यता धारी कहा जाता है उन्हें अभी 6 महीने का ब्रिज कोर्स करना पड़ेगा उसके बाद ही उनकी डिग्री कंप्लीट होगी अतः अभी हमारी योग्यता उनसे ऊपर है फिर भी गलत तरीके से, गलत संशोधन करते हुए, सरकार द्वारा अपने चहेतों को गलत तरीके से, 69000 शिक्षक भर्ती में नियुक्ति पत्र दिया गया जो खेद का विषय है।
🔴 सहायक अध्यापक की भर्ती में प्रशिक्षु अध्यापक कब से सम्मिलित किया जाने लगा।
🔴 25 जुलाई 2017 को आनंद कुमार यादव केस में शिक्षामित्रों को दिए गए दो समान मौकों में बराबर पासिंग मार्क ना करते हुए एक में 40- 45 और दूसरे में 60-65 क्यों रखा गया क्या यहांँ पर आर्टिकल 14 और 16 का उल्लंघन नहीं हुआ। हमारा एक शिक्षामित्र भाई 45% नंबर पर कर नौकरी कर रहा है और हम 45% नंबर पाकर नौकरी से बाहर है।
🔴 ऐसी स्थिति में आनंद कुमार यादव केस का आर्डर हम पर लागू कैसे हुआ? हमारा भारांक कहांँ गया और 25 जुलाई 2017 के आर्डर के अनुसार अगर हमें भारांक नहीं मिला तो हमारे साथ न्याय कैसे हुआ जबकि भारांक जोड़ने के बाद हमारा हर शिक्षामित्र 69000 चयन सूची में अंदर आता है।
🔴 69000 शिक्षक भर्ती के आर्डर में हर जगह कट ऑफ लिखा हुआ है तो हमारा हर शिक्षामित्र साथी जिसने 69000 शिक्षक भर्ती में प्रतिभाग किया था 60-65 कटऑफ को टच कर रहा है फिर हमें चयन से बाहर कैसे रखा जा सकता है।
🔴 68500 और 69000 भर्ती के बीच जो सबसे बड़ा अंतर है वह यह है कि 68500 में खेल के बीच में खेल का नियम नहीं बदला जाएगा और 69000 में खेल के बीच में खेल का नियम जाएगा इसके आधार पर भर्ती हुई है तो दोनों भर्तियों में से कौन सी भर्ती बैध है और कौन सी भर्ती अवैध।
🔴 हमारे 37339 पद जो हमारे लिए होल्ड किए गए थे वह आर्डर में कहीं भी अन होल्ड नहीं हुए हैं अर्थात हमारे होल्ड पदों पर हमें नियुक्ति दी जाए।
🔴 माननीय कोर्ट द्वारा हमारा जो 40-45 पास शिक्षामित्रों का डाटा मांँगा गया था वह किस लिए था यह हर शिक्षामित्र जानना चाहता है।
🔴 रिजवान अंसारी अपने चुनाव में मस्त हैं उन्हें कोर्ट से क्या मतलब, उन्हें शिक्षामित्रों से क्या मतलब। शिक्षामित्र मरता है तो मरे उन्होंने भी अपना उल्लू सीधा किया है बस।
🔴 एक बात और जो किसी भी शिक्षामित्र के समझ में नहीं आ रही है वह यह है कि हम 40,000 में अयोग्य तो 10000 में योग्य कैसे हैं क्या हमारी योग्यता का निर्धारण पैसों के मापदंडों पर मापी जा रही है। अगर हम 40000 में बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं तो 10000 में बच्चों का भविष्य बना कैसे रहे हैं, इस बात का जवाब शिक्षामित्र समाज आप सबसे जानना चाहता है क्योंकि बच्चों को पढ़ाने के मामले में हमसे वही काम लिया जा रहा है जो वेतन भोगी शिक्षकों से लिया जाता है लेकिन पैसों के मामले में सबको हम आयोग नजर आते हैं ऐसा भेदभाव क्यों?
उपरोक्त बातों से हम इस निष्कर्ष तक पहुंँचे हैं कि सभी जिम्मेदारों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए शिक्षामित्र समाज की बलि चढ़ा दी है तथा सभी ने अपनी कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क किया है और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन न करते हुए हमारे साथ घोर अन्याय। जिसे वह लोग खुद भी जानते हैं लेकिन स्वीकार नहीं कर रहे।
(उत्तर प्रदेश का पीड़ित शिक्षामित्र समुदाय)
सरकार प्रदेश और देश का अभिभावक सामान होता है और न्यायपालिका न्याय संगत संविधान के नियमानुसार बिना किसी भेद भाव बिना किसी के प्रभाव या पक्षपात न करते हुए न्याय देने का कार्य करती है लेकिन जब यही संस्था किसी के दबाव में कार्य करने लगे तो न्याय कैसे सम्भव,जब भी शिक्षामित्रो के हित में निर्णय आने की संभावना होती है तो कूटनीतिज्ञ तरीके से न्याय की हत्या कर दी जाती है और जब न्यायपालिका ही सरकार के आगे नतमस्तक हो जाय तो न्याय की क्या उम्मीद आज हर वर्ग समझते हुए भी मौन है,न्यायाधीश न्यायमूर्ति ईश्वर के रूप होते हैं और जब ईश्वर ही लाचार हो जाय तो किसी और को न्याय कैसे देगा।
ReplyDeleteAbsolutely right
ReplyDeleteजहाँ कुछ नाही हैं वहा कुदरत का कानून चलेगा जहाँ हाई कोर्ट,सुप्रीम कोर्ट,मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री सब ढेर हो जायेगे।
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