डिजिटल युग में बच्चों की नई परेशानी
आज का युग डिजिटल हो गया है, और स्मार्टफोन बच्चों और किशोरों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। हालांकि, इसका बढ़ता इस्तेमाल अब बच्चों के लिए खतरे की घंटी बनता जा रहा है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल और स्क्रीन टाइम बच्चों की नींद, खुशी और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहा है।
बढ़ रहा है स्क्रीन टाइम
2018 से 2024 के बीच हुए एक अध्ययन में पाया गया कि बच्चों में मोबाइल का उपयोग तेजी से बढ़ा है।
- 2012 में 62% बच्चों के पास स्मार्टफोन था।
- 2021 तक यह आंकड़ा 94% हो गया।
- 2018 में 37% बच्चे एक हफ्ते में 11 घंटे से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करते थे।
- 2024 तक यह आंकड़ा 73% हो गया है।
पीयरसू (PSU) का खतरा
अध्ययन में बच्चों में एक नई मानसिक स्थिति "पीयरसू" (Problematic Smartphone Use - PSU) की पहचान की गई है। इसके लक्षण हैं:
- बार-बार फोन चेक करना
- पढ़ाई या नींद में रुकावट
- बिना फोन के चिड़चिड़ापन या गुस्सा
- सामान्य गतिविधियों में अरुचि
पीयरसू में बढ़ोतरी के आंकड़े
- 2019 में 23% बच्चों में पीयरसू के लक्षण थे
- कोरोना काल में यह बढ़कर 30% हो गया
- लड़कियों में यह समस्या लड़कों की तुलना में ज्यादा पाई गई
- जिन बच्चों का PSU स्कोर ज्यादा था, उनकी जीवन गुणवत्ता खराब थी
भारत की स्थिति
JMSAR की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 10-19 साल के बच्चों का औसतन स्क्रीन टाइम 6 घंटे से अधिक है। बच्चों में मानसिक तनाव, नींद की कमी और एकाग्रता में कमी देखी जा रही है।
मोबाइल की लत से कैसे बचाएं बच्चों को?
- बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं
- फोन का सीमित उपयोग तय करें
- बच्चों को बाहर खेलने और किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें
- स्क्रीन टाइम के लिए परिवार में नियम बनाएं
निष्कर्ष
मोबाइल और टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी को आसान बनाया है, लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के लिए खतनाक साबित हो रहा है। समय रहते जागरूक होकर ही हम अपने बच्चों को सुरक्षित, खुशहाल और संतुलित जीवन दे सकते हैं।
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