समायोजन निरस्त होने के कारण आपने मेरी पहली पोस्ट मे बिन्दू 1से 6 तक पढे उससे आगे
7 से 11तक पढे।
(7) अनुच्छेद_142_के_तहत_प्रदत्त_शक्तियों_का_प्रयोग_व_आदेश
वकीलों द्वारा यह तर्क देना कि Dharwad तथा प्यारा सिंह केस जैसे निर्णयों से संविदा कर्मियों को भविष्य में स्थायी होने की Legitimate Expectation हो गई, अर्थात इन निर्णयों ने ऐसे कर्मचारियों के मन में भविष्य में स्थायी होने की उम्मीद जगा दी अतः इनको स्थायी कर दिया जाए, मान्य नहीं किया जा सकता है। संविदा कर्मी Legitimate Expectation की थ्योरी की दुहाई नहीं दे सकते, चूँकि नियुक्ति देते समय नियोक्ता ने किसी भी संविदा कर्मी को भविष्य में स्थायी करने का वादा नहीं किया था अतः इस तरह की मांग करना मान्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि नियोक्ता चाह कर भी संविधानिक नियमों के तहत नियुक्ति के समय ऐसा वादा नहीं कर सकता था।
वकीलों द्वारा यह तर्क भी दिया गया कि अनुच्छेद 14 व 16 के तहत संविदा कर्मियों के अधिकारों का हनन हुआ है क्योंकि उनसे भी वह ही कार्य कराया जाता है जो स्थायी कर्मियों द्वारा कराया जाता है जबकि स्थायी कर्मियों को संविदा कर्मियों से कहीं अधिक वेतन/मेहनताना दिया जाता है अतः उनको भी स्थायी किया जाए। हालाँकि यह स्पष्ट है कि संविदा कर्मियों को उतने वेतन/मानदेय का भुगतान किया जा रहा है जो नियुक्ति के उनकी जानकारी में था। ऐसा बिलकुल नहीं है कि निर्धारित मानदेय का भुगतान न किया जा रहा हो। संविदा कर्मी एक अलग ही श्रेणी के कर्मचारी होते हैं व उनको निर्धारित नियमों के अनुसार नियुक्त हुए स्थायी कर्मचारियों के समान नहीं कहा जा सकता है। अगर इस तर्क को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात पर लागू कर भी लिया जाए तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि संविदा कर्मियों के पास ऐसा कोई अधिकार आ गया जिसके द्वारा उनको नियमित सेवा में स्थायी कर दिया जाए क्योंकि स्थायी नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का पालन करते हुए ही की जा सकती है। संविदा कर्मियों को संविधानिक नियमों के अनुपालन में नौकरी पाए स्थायी कर्मियों के समान मानते हुए उनको समायोजित करना असमान लोगों को एक समान मानना होगा जो कि संविधानिक दृष्टि से मान्य नहीं किया जा सकता है। अतः अनुच्छेद 14 व 16 के तहत समायोजन की मांग को खारिज किया जाता है।
यह भी तर्क दिया जाता है कि भारत जैसे देश में जहाँ रोजगार को लेकर इतनी मारामारी है तथा एक बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में हैं अतः स्टेट द्वारा संविदा कर्मियों को स्थायी न करना संविधान के अनुच्छेद 21 की अवहेलना होगी। इस तर्क में ही इस तर्क की काट भी निहित है। भारत एक बड़ा देश है तथा एक बड़ी संख्या में लोग रोजगार व सरकारी सेवा में रोजगार हेतु समान अवसर के इंतजार में हैं। इसी कारण संविधान के मूलभूत ढांचे में अनुच्छेद 14, 16 व 309 को स्थान दिया गया है, ताकि सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ उचित व न्यायसंगत रूप से हों तथा उन सभी को समान मौका मिले जो उस पद हेतु योग्यता रखते हों। अतः अनुच्छेद 21 के तहत एक ख़ास वर्ग के लोगों के लिए समस्त योग्य लोगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इतने कम मानदेय पर कार्य करा कर सरकार ने जबरदस्ती मजदूरी कराई है जिससे अनुच्छेद 23 की अवहेलना हुई है। इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि संविदा कर्मियों ने स्वेच्छा से नियुक्ति हेतु हामी भरी थी तथा नियुक्ति की शर्तों से पूर्ण रूप से वाकिफ थे। परिस्थिति विशेष में न्याय करने के नाम पर हम केवल कोर्ट में न्याय मांगने आए लोगों को वरीयता नहीं दे सकते, हमें उन अनेकों लोगों के अधिकारों को भी ध्यान में रखना है जो सरकारी सेवा में समान अवसर की प्रतीक्षा में हैं। अतः अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए तर्कों को ओवर रूल किया जाता है।
सामान्यतः जब अस्थायी कर्मचारी कोर्ट में याची बन कर आते हैं तब उनकी मांग होती है कि कोर्ट सम्बंधित नियोक्ता को परमादेश (Mandamus) जारी करे कि उक्त कर्मचारियों को स्थायी सेवा में समायोजित कर लिया जाए। अब यह प्रश्न उठता है कि क्या इस बाबत परमादेश जारी किया जा सकता है? इस प्रश्न के उत्तर हेतु Dr. Rai Shivendra Bahadur Vs. The Governing Body of the Nalanda College केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधानिक पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर ध्यान देना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा था, "परमादेश द्वारा किसी अधिकारी/सरकार को कुछ करने के लिए बाध्य करने से पूर्व यह निर्धारित करना होता है कि वास्तव में कोई कानून उस अधिकारी को वह कार्य करने को कानूनी रूप से बाध्य करता है तथा साथ ही साथ परमादेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को भी सिद्ध करना होता है कि यह कार्य कराने हेतु उसके पास कानूनी अधिकार हैं।" उपरोक्त निर्णय इस परिस्थिति में भी कार्य करेगा, जैसा कि साफ़ है कि अस्थायी कर्मियों के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है जिसके तहत वह स्वयं को स्थायी करने की मांग कर सकें अतः उनके पक्ष में इस बाबत कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है/
यहाँ यह साफ़ कर देना भी उचित है कि ऐसे अस्थायी कर्मचारी जिनकी नियुक्ति केवल अनियमित (Irregular) है तथा जो 10 वर्ष से अधिक समय तक बिना मुकदमे बाजी के कार्यरत रहे हैं, की नियुक्ति को नियमित किया जा सकता है। अतः कोर्ट यह आदेश देती है कि ऐसे अनियमित कर्मचारियों को जिन्होंने बिना कोर्ट के दखल के 10 वर्ष से अधिक कार्य किया हो तथा जिनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई हो, को आदेश जारी होने के 6 माह के भीतर केवल एक बार, नियमित करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं। तथा ऐसे स्वीकृत पद जो अभी भी रिक्त हों को नियमित प्रक्रिया द्वारा भरा जाए। (#पैरा_44)
यह भी स्पष्ट किया जाता है कि जिन निर्णयों में इस केस के निर्णय में बताए गए दिशानिर्देशों से हटकर स्थायी करने अथवा समायोजन करने के आदेश दिए गए हैं, उनको अब से नजीर के रूप में प्रयोग नहीं किया जाए (#पैरा_45) वाणिज्य कर विभाग से सम्बंधित मुद्दों में हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिहाड़ी पर कार्यरत कर्मचारियों को अन्य स्थायी कर्मचारी जो अपने निर्धारित संवर्ग में कार्यरत हैं, के समान वेतन व भत्त्ते संविदा पर नियुक्ति के प्रथम दिन से दिए जाएं। साफ़ जाहिर है कि हाई कोर्ट ने उचित निर्णय नहीं दिया। राज्य पर इस तरह का भार डालना हाई कोर्ट के अधिकार में नहीं था खासकर तब जब उनके समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या ऐसे दिहाड़ी पर कार्यरत कर्मचारियों को समान कार्य हेतु समान वेतन दिया जाए जबकि उनको सरकार द्वारा संविदाकर्मी नियुक्त न करने के आदेश के बाद भी नियुक्त किया गया था। हाई कोर्ट अधिक से अधिक यह निर्णय दे सकती थी कि उक्त संविदा कर्मियों को आदेश की तिथि से समान कार्य हेतु स्थायी कर्मियों के समान वेतन दिया जाए। अतः स हिस्से को सुधारते हुए यह निर्णय दिया जाता है कि ऐसे दिहाड़ी कर्मचारियों को उस कैडर की स्थायी सेवा में नियुक्त कर्मचारियों के सबसे निचले ग्रेड के अनुसार वेतन हाई कोर्ट के आदेश की तिथि से दिया जाए। तथा जैसा कि हमने निर्णय दिया है कि कोर्ट किसी भी प्रकार के समायोजन का आदेश नहीं दे सकती हैं अतः हाई कोर्ट के आदेश के उस हिस्से जिसमें उन्होंने वाणिज्य कर विभाग के संविदा कर्मियों को स्थायी करने का आदेश दिया है, को रद्द किया जाता है।
यदि स्वीकृत पद रिक्त हैं तब सरकार उन पदों को नियमित चयन प्रक्रिया द्वारा जल्द से जल्द भरने हेतु आवश्यक कदम उठाएगी, नियमित चयन प्रक्रिया में वाणिज्य कर विभाग, के संविदा कर्मियों (सिविल अपील 3595-3612 के प्रतिवादी) को भी भाग लेने का मौका मिलेगा। उनको अधिकतम आयु सीमा में छूट तथा विभाग में इतने लम्बे समय तक कार्य करने के कारण, कुछ भारांक दिया जाएगा। इस परिस्थिति में पूर्ण न्याय करने हेतु अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इतना ही प्रयोग किया जा सकता है। (#पैरा_46)
8 आदेश_का_सार
★ इस आदेश के द्वारा देश समस्त संविदा कर्मियों को कवर किया गया है।
★ किसी भी संविदा कर्मी को नियमित केवल इस ही केस में आए आदेश के अनुसार किया जा सकता है तथा किसी भी अन्य आदेश को आधार नहीं बनाया जा सकता है। (पैरा 45)
★ संविधान का अनुच्छेद 309 सरकार को सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु नियम बनाने की शक्ति देता है। अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए रूल्स में सरकार सेवा शर्तें, चयन का आधार/तरीका आदि निर्धारित कर सकती है। सरकार द्वारा यदि उपरोक्त नियम बनाए गए हैं तब सरकारी पदों पर चयन केवल इन ही नियमों के अनुसार ही हो सकता है।
★ किसी भी सरकारी पद पर नियुक्ति केवल समस्त योग्य लोगों से विज्ञापन के माध्यम से आवेदन मांग कर व एक उचित चयन समिति द्वारा किसी उचित चयन प्रक्रिया जिससे आवेदन करने वालों की मेरिट की तुलना उचित रूप से हो सके, द्वारा ही की जा सकती है।
★ यदि संसद भी चाहें तब भी संविधान के मूलभूत ढाँचे अर्थात अनुच्छेद 14 व 16 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकारों से खिलवाड़ नहीं कर सकती है। अर्थात संविधान में संशोधन लाकर संविधान के मूलभूत ढांचे को बदला नहीं जा सकता है, ऐसे संशोधन संविधान के मूलभूत ढांचे से अल्ट्रा वायर्स घोषित हो जाएंगे।
★ सरकारी सेवा में समानता के अधिकार का पालन करना आवश्यक है तथा हमारा संविधान क़ानून के राज की बात करता है अतः यह कोर्ट किसी चयन प्रक्रिया में अनुच्छेद 14 व 16 के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
★ सरकारी सेवा में समानता के अधिकार का पालन करना आवश्यक है तथा हमारा संविधान क़ानून के राज की बात करता है अतः यह कोर्ट किसी चयन प्रक्रिया में अनुच्छेद 14 व 16 के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
★ नियमितीकरण (Regularization) तथा स्थायी करने (Conferring permanence) में अंतर होता है। नियमित करने व स्थायी करने में बहुत फर्क है, इन दोनों को एक ही अर्थ में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
★ नियमितीकरण (Regularization) का अर्थ किसी ऐसी प्रक्रिया सम्बन्धी कमी को दूर करना है जो चयन करते समय चयन प्रक्रिया में रह गई हो।
★ जब नियुक्ति एक्ट/रूल्स, अथवा न्यूनतम योग्यता को दरकिनार करते हुए होती है तब ऐसी नियुक्ति को अनियमित (Irregular) नियुक्ति नहीं अपितु गैर कानूनी (Illegal) नियुक्ति कहते हैं जिसको नियमित नहीं किया जा सकता है।
★ केवल अनियमित नियुक्तियों को नियमित किया जा सकता है, गैर कानूनी नियुक्ति को नियमित करने का प्रश्न ही नहीं होता।
★ समान कार्य हेतु समान वेतन देना अलग बात है परन्तु समस्त संविदा कर्मियों या अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करना अलग बात है। सरकारी पदों पर स्थायी नियुक्ति केवल संविधान के नियमों के तहत ही की जा सकती है।
★ जब नियुक्ति संविदा पर तथा पूर्व निर्धारित मानदेय पर होती है तब संविदा के अंत में नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाती है तथा ऐसे संविदा कर्मी के पास सेवा में बने रहने अथवा नियमित किये जाने का कोई अधिकार नहीं होता है।
★ केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी पद पर कई वर्ष कार्यरत रहा हो तो उसको उस पद पर नियमित होने का अधिकार नहीं मिल जाता है।
★ केवल संवेदना के आधार पर अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
★ नियमितीकरण को नियुक्ति करने का एक तरीका नहीं माना जा सकता है, न ही यह नियुक्ति का एक तरीका हो सकता है।
★ नौकरी चुनते समय सम्बंधित व्यक्ति उस नौकरी की शर्तों को जानता है व समझता है। यह तथ्य कि कोई व्यक्ति किसी पद पर वर्षों से कार्य कर रहा है अतः उसको निकालना न्यायोचित नहीं होगा, मान्य नहीं किया जा सकता है।
★ संविदा कर्मी Legitimate Expectation की थ्योरी की दुहाई नहीं दे सकते, चूँकि नियुक्ति देते समय नियोक्ता ने किसी भी संविदा कर्मी को भविष्य में स्थायी करने का वादा नहीं किया था अतः इस तरह की मांग करना मान्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि नियोक्ता चाह कर भी संविधानिक नियमों के तहत नियुक्ति के समय ऐसा वादा नहीं कर सकता था।
★ संविदा कर्मियों को संविधानिक नियमों के अनुपालन में नौकरी पाए स्थायी कर्मियों के समान मानते हुए उनको समायोजित करना असमान लोगों को एक समान मानना होगा जो कि संविधानिक दृष्टि से मान्य नहीं किया जा सकता है।
★ सुप्रीम कोर्ट की तरह हाई कोर्ट के पास अनुच्छेद 142 जैसी शक्ति नहीं होती है अतः केवल इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी केस में अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए कोई आदेश जारी किया हो, हाई कोर्ट भी उसको नजीर बनाते हुए वैसा ही आदेश जारी नहीं कर सकती हैं।
★ नजीर केवल उन ही आदेशों को बनाया जा सकता है जिसमें किसी कानूनी प्रश्न को हल किया गया हो।
★ अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय केवल क़ानून के दायरे में रह कर किया जा सकता है, हालाँकि राहत को किस प्रकार देना है यह कोर्ट पर निर्भर करता है परन्तु ऐसी कोई भी राहत नहीं दी जा सकती जिससे किसी गैर कानूनी कार्य को बढ़ावा मिले।
★ यदि पूर्व में किसी केस विशेष में सुप्रीम कोर्ट ने किसी संविदा कर्मी को स्थायी किया है तब उस केस के निर्णय के आधार पर कोई अन्य संविदा कर्मी हाई कोर्ट में स्वयं को भी नियमित करने की मांग नहीं कर सकता है।
★ परिस्थिति विशेष में पूर्ण न्याय करने के नाम पर हम केवल कोर्ट में न्याय मांगने आए लोगों को ही ध्यान में नहीं रख सकते, हमें उन अनेकों लोगों के अधिकारों को भी ध्यान में रखना है जो सरकारी सेवा में समान अवसर की प्रतीक्षा में हैं।
★ परमादेश द्वारा किसी अधिकारी/सरकार को कुछ करने के लिए बाध्य करने से पूर्व यह निर्धारित करना होता है कि वास्तव में कोई कानून उस अधिकारी को वह कार्य करने को कानूनी रूप से बाध्य करता है तथा साथ ही साथ परमादेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को भी सिद्ध करना होता है कि यह कार्य कराने हेतु उसके पास कानूनी अधिकार हैं।
★ अस्थायी कर्मियों के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है जिसके तहत वह स्वयं को स्थायी करने की मांग कर सकें अतः उनके पक्ष में इस बाबत कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।
★ ऐसे अस्थायी कर्मचारी जिनकी नियुक्ति केवल अनियमित (Irregular) है तथा जो 10 वर्ष से अधिक समय तक बिना मुकदमे बाजी के कार्यरत रहे हैं, की नियुक्ति का नियमितीकरण (Regularization) किया जा सकता है। अतः कोर्ट यह आदेश देती है कि ऐसे अनियमित कर्मचारियों को जिन्होंने बिना कोर्ट के दखल के 10 वर्ष से अधिक कार्य किया हो तथा जिनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई हो, को आदेश जारी होने के 6 माह के भीतर केवल एक बार, नियमित करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं।
★ यदि स्वीकृत पद रिक्त हैं तब सरकार उन पदों को नियमित चयन प्रक्रिया द्वारा जल्द से जल्द भरने हेतु आवश्यक कदम उठाएगी, नियमित चयन प्रक्रिया में वाणिज्य कर विभाग, के संविदा कर्मियों (सिविल अपील 3595-3612 के प्रतिवादी) को भी भाग लेने का मौका मिलेगा। उनको अधिकतम आयु सीमा में छूट तथा विभाग में इतने लम्बे समय तक कार्य करने के कारण, कुछ भारांक दिया जाएगा। इस परिस्थिति में पूर्ण न्याय करने हेतु अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस हद तक ही प्रयोग किया जा सकता है।
9 आदेश_का_महा_
★★ कोर्ट केवल नियमितीकरण का आदेश दे सकती हैं। स्थायी करने का नहीं।
★★ नियुक्ति के समय प्रक्रिया सम्बन्धी कमी को दूर करना नियमितीकरण (Regularization) कहलाता है।
★★ एक्ट/रूल्स, अथवा न्यूनतम योग्यता को दरकिनार करते हुए हुई नियुक्ति गैर कानूनी (Illegal) नियुक्ति कहते हैं।
★★ अनियमित नियुक्ति को नियमित किया जा सकता है। गैर कानूनी नियुक्ति को नहीं।
★★ सरकारी पदों पर नियुक्ति अनुच्छेद 14, 16 व 309 के तहत केवल खुली भर्ती द्वारा हो सकती हैं।
★★ अनुच्छेद 14, 16 व 309 संविधान के मूलभूत ढाँचे का हिस्सा हैं।
★★ संसद संविधानिक संशोधन लाकर भी संविधान के मूलभूत ढांचे को बदल नहीं सकती।
🔟 शिक्षा_मित्र_केस_से_लिंक
★ शिक्षा मित्र संविदा कर्मी मात्र हैं।
★ नियुक्ति के समय उनको अपनी नियुक्ति की शर्तों का ज्ञान था।
★ शिक्षा मित्रों की प्रथम नियुक्ति संविधानिक नियमों अर्थात अनुच्छेद 14, 16 व 309 के अनुसार नहीं हुई थी।
★ शिक्षा मित्रों का चयन सर्विस रूल से नहीं हुआ था।
★ नियुक्ति के समय शिक्षा मित्र सर्विस रूल में विहित न्यूनतम योग्यता (बीटीसी + स्नातक) नहीं रखते थे।
★ शिक्षा मित्रों की नियुक्ति के समय आरक्षण के नियमों का पालन नहीं हुआ था। जिस जाति का ग्राम प्रधान था उस ही जाति का शिक्षा मित्र नियुक्त कर लेना आरक्षण नियमों का पालन नहीं कहा जा सकता है।
★ शिक्षा मित्रों की प्रथम नियुक्ति अनियमित नहीं अपितु गैर कानूनी थी।
★ गैर कानूनी नियुक्ति को नियमित नहीं किया जा सकता है।
11 कुछ शिक्षा मित्र नेता कहते हैं कि समायोजन बाधा नहीं है बल्कि टीईटी बाधा है। मैं कहता हूँ कि टीईटी तो आप लोग हो सकता है कैसे भी पास कर लें, वास्तविक बाधा समायोजन है। आपका समायोजन नहीं हो सकता है। टीईटी पास कर के बीटीसी प्रशिक्षितों से प्रतिस्पर्धा कर के ही खुली भर्ती के माध्यम से ही आ सकते हो।
#ऐसा भी नही है कि इस समस्या का समाधान है ओर शिक्षामित्र नियमित भी हो सकता है दरअसल इसको पढने के बाद आपको ये बहुत बडी समस्या दिखाई देगी।परन्तु इसका समाधान उतना बडा नही है।
अगली पोस्ट मे इसका समाधान भी लिखूगाँ ।मेरी पोस्ट पढते रहये।और चिन्ता तो बिल्कुल ही ना करे।मस्त रहे।
संजीव कुमार बालियान
8433029010
Shi bat h likhte rhiye hm lucknow university ke vidyarthi ha mera name VIKAS DEV PANDEY h hmlog shikshamitra ke dukh se dukhi h kripaya hmara bhi name or lucknow university ka bhi name apne channel pr dikhaye
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