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Monday 30 December 2019
Saturday 28 December 2019
बिग बाजार : 50 रु0 में बने 1.24 शिक्षामित्र केस में याची। बड़ी खबर।
पैराटीचर वेलफेयर एसोसिएशन उत्तरप्रदेश, ब्रजपान्त
मित्रो नमस्कार आगामी 10 जनवरी को 124000 प्रफुल्ल कुमार (भोला शुक्ला) वाली रिट में फाइनल सुनबाई होने जा रही है। कुछ लोग याची के नाम पर धंधा कर रहे हैं ना उनकी कोई याचिका है वो लोग भोला शुक्ला जी की याचिका में ही आई ए डालकर याची याची का खेलखेल कर शिक्षामित्रों से 2000 से 4000 रुपये लेकर उनका शोषण कर रहे हैं। ऐसे लोगों से बचाने के लिए प्रफुल्ल कुमार जी( भोला शुक्ला जी) द्वारा पैराटीचर वेलफेयर एसोसिएशन उत्तरप्रदेश संघठन के नाम से माननीय सुप्रीम कोर्ट में आई ए डाली है जिससे उत्तरप्रदेश के 124000 की श्रेणी में आने वाले बहन भाइयों को इस याचिका में लाभ मिल सके लाभ तभी मिलेगा जब आप संघठन के सदस्य बनेंगे ।
सदस्य बनने के लिए आपको पैराटीचर वेलफेयर एसोसिएशन उत्तरप्रदेश के अपने जनपद के जिलाध्यक्ष/ ब्लॉकध्यक्ष से सिर्फ 50 रुपये शुल्क देकर अपनी रसीद प्राप्त करनी है। सभी 124000 की श्रेणी में आने वाले भाई बहन जल्द से जल्द 50 रुपये देकर संघठन के सदस्य अवश्य बन जायें।
मित्रों 124000 शिक्षामित्रों को पैराटीचर माना गया था पैराटीचर को अपग्रेड करते हुए टीचर्स के समकक्ष वेतन जारी किया गया। जब आप पैराटीचर वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य बन जायेंगे। तो आपका दावा कोर्ट केस में 100% हो जाएगा।
इसलिए जो लोग याची के नाम पर धंधा कर रहे हैं उनसे आप सावधान रहें। और उन लोगों से भी सावधान रहें जो 124000 की श्रेणी में नहीं आते हैं वो आपको गुमराह करने का काम करेंगे । लेकिन आप सब शिक्षक हैं 124000 के साथ पहले ही सभी नेताओं ने धोखा किया है। अब सही रास्ते पर चलना आप का काम हैं। आप सब जल्द से जल्द संघठन के सदस्य बनें । समय कम है। 5 जनवरी को सभी जिलाध्यक्षों को 124000 की श्रेणी वाले सभी सदस्यों की सूची में उनके नाम उनके विद्यालय ब्लॉक का नाम एवं स्नातक वर्ष का व्योरा देना होगा। जो लोग सदस्य बन जायेंगे उनको याची बनने की कोई जरूरत नहीं है।
प्रफुल्ल कुमार ( भोलाशुक्ला)
प्रदेश अध्यक्ष
रिज़वान अंसारी द्वारा 69000 शिक्षक भर्ती के में एक और खुलासा। नया मोड़, नई राह।
झारखंड लोक सेवा आयोग जजमेंट और 69000 शिक्षक भर्ती पासिंग मॉर्क केस में समतुल्यता ?
✍🏼टीम रिज़वान अंसारी
18 दिसम्बर 2019 को मा0 सुप्रीम कोर्ट की मा0जस्टिस एल0नागेश्वर राव और मा0 जस्टिस दीपक गुप्ता की खण्डपीठ ने झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की अपील पर फैसला देते हुए JPSC की अपील को बहाल कर दिया। पूरा का पूरा फैसला एकदम सीसे की तरह साफ है। इस फैसले में न तो किसी का तर्क चलेगा और न ही कुतर्क। पूरा जजमेंट मा0जस्टिस दीपक गुप्ता ने लिखा है। JPSC द्वारा प्रवक्ता पद के लिए SLET (State Level Eligibility Test) परीक्षा तीन चरणों मे निर्धारित की गई थी। जो भी अभ्यर्थी प्रथम और द्वितीय चरण को उत्तीर्ण करेगा वो तीसरे चरण की परीक्षा में प्रतिभाग करेगा। प्रथम और द्वितीय चरण की परीक्षा के कटऑफ पूर्व में तय थे लेकिन तीसरे चरण की परीक्षा में कटऑफ परीक्षा होने के बाद निर्धारित किये गए। *बस विवाद ने यहीं से जन्म लिया।
हाइकोर्ट ने अपने फैसले में माना था कि तृतीय चरण की परीक्षा के लिए विज्ञापन में कटऑफ निर्धारित नही किया गया था। परीक्षा के बाद कटऑफ निर्धारित करने के विषय को हाइकोर्ट ने *"खेल के नियम खेल शुरू होने के बाद नही बदलते"* के प्रतिपादित सिद्धांत से को-रिलेट करते हुए JPSC के इस काम को मूल नियम के विरुद्ध मानते हुए अभ्यर्थियों के पक्ष मे फैसला दे दिया।
अब इस फैसले को JPSC ने म0सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। मा0 सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर एकदम सपाट 07 पन्नों का जजमेंट दिया।
झारखण्ड लोक सेवा आयोग (JPSC) ने सबमिशन दिया कि तृतीय चरण की SLET की परीक्षा के कटऑफ निर्धारण के लिए UGC (University Grant Commission) द्वारा SLET की तृतीय चरण की परीक्षा के बाद कटऑफ निर्धारित करने के लिए एक परनियमन समिति
(moderation committee) का निर्माण किया गया है। ये माडरेशन कमेटी रिजल्ट जारी करते समय कटऑफ तय करने में मदद करेगी जो कि 07 सदस्यीय होगी। मा0 सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि माडरेशन कमेटी का कटऑफ निर्धारित करने का नियम पूर्व में UGC द्वारा निर्धारित था लिहाजा हाइकोर्ट का ये कहना कि *परीक्षा के बाद पासिंग मॉर्क लगाना खेल के नियम बदलने जैसा है* तो ये नियम विरुद्ध है। क्योंकि यहाँ पर खेल के बाद नियम बदले ही नही गए अपितु ये तो प्रवक्ता पद के योग्य अभ्यर्थियों की मेरिट के लिए चयन का एक अतिरिक्त पहलू था जिसे माडरेशन कमेटी ने अपनाया जो पूर्व निहित है। लिहाजा मा0सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट का 09 नवम्बर 2016 का फैसला रद्द करते हुए JPSC के पक्ष में फैसला सुनाया।
Conclusion-
69000 शिक्षक भर्ती पासिंग मॉर्क केस इस केस से बिल्कुल भिन्न है। क्योंकि SLET की इस परीक्षा का पैमाना UGC द्वारा निर्धारित किया था।जिसमे UGC के बनाये गए नियम चले। जबकि इस ATRE की निर्धारणकर्ता एजेंसी सिर्फ स्टेट है। पासिंग मॉर्क निर्धारण में ऐसा कोई नियम ही नही है जो NCTE ने पूर्व में निर्धारित किया हो। इसलिए 69000 ATRE और SLET परीक्षा के पासिंग अंक निर्धारण में समानता करना एकदम बेवकूफी है। 68500 और 69000 शिक्षक भर्ती की नियमावली एक ही हैं। इस नियमावली में कहीं पर भी JPSC की भांति पासिंग अंक तय करने के लिए किसी भी माडरेशन कमेटी टाइप की कोई समिति गठित नही की गई है जो 69000 ATRE परीक्षा हो जाने के बाद पासिंग अंक तय करे।
ये दोनों केस आपस में एक दूसरे से कतई को-रिलेट नही है। जिसे ज्यादा सर्दी सता रही है वही इन दोनों केसों में आभासी सम्बन्ध स्थापित करवा रहा है।
आप सभी निश्चिन्त रहें,बेफिक्र रहें क्योंकि टीम रिज़वान अंसारी देर से बोलेगी लेकिन दुरस्त बोलेगी।क्योंकि शतरंज की बाज़ी धैर्यवान ही जीतता है।
Thursday 26 December 2019
आपसी खींचतान में शिक्षामित्र खो देंगे अपना सबकुछ - एस0एम0 फाउंडेशन। खास संदेश।
साथियों मै धर्मेंद्र कुमार पांडेय
आज आपसे दो बिंदुओं पर बात करना चाहता हूं।
१- वर्तमान १२४००० की रिट जोकि सुप्रीम कोर्ट में संघर्ष के दौर से गुजर रही है
साथियों मेरे द्वारा पूर्व में ही 124000 का संघर्ष करने वाले लोगों को समझाया गया था परंतु पता नहीं क्यों इन सभी की अतिमहत्वाकांक्षा कहें या हठधर्मिता
इनके द्वारा किए जा रहे संघर्ष और संघर्ष की दिशा दोनों ही संदेह के घेरे में है । ऐसा प्रतीत होता है इनकी पूरी टीम एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए संघर्ष कर रही है।
वर्तमान परिस्थितियों पर मैं स्वयं धर्मेंद्र कुमार पांडेय और फाउंडेशन की कोर कमेटी लगातार मनन चिंतन करती रही है।
इस प्रकरण को दिल्ली में हमारे वकील बड़ी ही बारीकी से अध्ययन कर रहे थे कल जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि
आपसी खींचतान के चलते हमलोग पाने के स्थान पर कहीं कुछ खो न दें ।
साथियों ऐसी स्थिति में हम और हमारे एस0एम0 फाउंडेशन की कोर कमेटी आगामी 24 घंटों में का मंतव्य(विचार) जानना चाहती है
क्या एस0एम0 फाउंडेशन को आगे आकर इस प्रकरण में हस्तक्षेप करना चाहिए ........?
आपसे विनम्र निवेदन है 24 घंटे के अंदर 9450051391 मोबाइल नंबर पर अपना संदेश0उपलब्ध कराने की कृपा करें
ताकि समय रहते 124000 की लड़ाई को सही दिशा दी जा सके ।
2 - साथियों आप अपने परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है
जरा सोचें आज जब 10000 रुपए में घर का खर्च चलाना अति दुरूह है। फिर
आप के बिना परिवार की संकल्पना ही शून्य है।
अतः धैर्य रखें और सुरक्षित चले।
आज नहीं तो कल हमारी भी जिंदगी का सूर्योदय पुनः होगा।
आज आपसे दो बिंदुओं पर बात करना चाहता हूं।
१- वर्तमान १२४००० की रिट जोकि सुप्रीम कोर्ट में संघर्ष के दौर से गुजर रही है
साथियों मेरे द्वारा पूर्व में ही 124000 का संघर्ष करने वाले लोगों को समझाया गया था परंतु पता नहीं क्यों इन सभी की अतिमहत्वाकांक्षा कहें या हठधर्मिता
इनके द्वारा किए जा रहे संघर्ष और संघर्ष की दिशा दोनों ही संदेह के घेरे में है । ऐसा प्रतीत होता है इनकी पूरी टीम एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए संघर्ष कर रही है।
वर्तमान परिस्थितियों पर मैं स्वयं धर्मेंद्र कुमार पांडेय और फाउंडेशन की कोर कमेटी लगातार मनन चिंतन करती रही है।
इस प्रकरण को दिल्ली में हमारे वकील बड़ी ही बारीकी से अध्ययन कर रहे थे कल जब उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि
आपसी खींचतान के चलते हमलोग पाने के स्थान पर कहीं कुछ खो न दें ।
साथियों ऐसी स्थिति में हम और हमारे एस0एम0 फाउंडेशन की कोर कमेटी आगामी 24 घंटों में का मंतव्य(विचार) जानना चाहती है
क्या एस0एम0 फाउंडेशन को आगे आकर इस प्रकरण में हस्तक्षेप करना चाहिए ........?
आपसे विनम्र निवेदन है 24 घंटे के अंदर 9450051391 मोबाइल नंबर पर अपना संदेश0उपलब्ध कराने की कृपा करें
ताकि समय रहते 124000 की लड़ाई को सही दिशा दी जा सके ।
2 - साथियों आप अपने परिवार के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है
जरा सोचें आज जब 10000 रुपए में घर का खर्च चलाना अति दुरूह है। फिर
आप के बिना परिवार की संकल्पना ही शून्य है।
अतः धैर्य रखें और सुरक्षित चले।
आज नहीं तो कल हमारी भी जिंदगी का सूर्योदय पुनः होगा।
Wednesday 25 December 2019
विधान सभा मे शिक्षामित्र के 38878 रु0 मानदेय मुद्दा पर शिव पूजन सिंह की ये रही गलती।
विधान सभा में बीएसपी के विधायक मो०असलम रायनी ने शिक्षामित्रों के मुद्दे पर मेरे द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में दाखिल रिट के आदेश का हवाला दिया।
माननीय विधायक जी का आभार !दूसरे दिन विधायक जी से हमने बात किया।उन्हें पर्याप्त जानकारी नहीं दी गयी थी।आधी अधूरी जानकारी लेकर अपना पक्ष रखा। मुद्दा तो बना दिया पर जरूरत सही ढंग से शिक्षामित्रों का पक्ष रखना है। भविष्य में सम्भवतः अच्छा करें।जिस दिन से माननीय सदन में मुद्दा उठा तभीसे बहुत से अति महत्वाकांक्षी लोग शिक्षामित्रों को गुमराह करने में लग गये।
ऐसे लोगों से शिक्षामित्रों को पूर्ण रूपेण बचना है।माननीय उच्चतम न्यायालय में रिट की पैरवी, याची बनने ,नयी रिट दाखिल करने आदि उपक्रमों से बचें। किसी को किसी भी तरह का आर्थिक सहयोग न करें न ही किसी से करायें।किसी भी माननीय कोर्ट!शासन - प्रशासन या अन्य कोई भी आदेश!होगा तो समस्त शिक्षामित्रों पर लागू होगा।विनम्र निवेदन है आप सब गुमराह होने से बचें।
अनावश्यक रूप से किसी का विरोध न करें। उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षामित्र प्रकरण पर काफी गम्भीरता से निर्णय ले रही।इसमें किसी भी शिक्षामित्र नेता की कोई भूमिका नहीं है।सत्यता से अवगत रहें,मायावी लोगों से अति सावधान रहें।अपने शहीद शिक्षामित्र भाई बहनों को एवम उनके परिजनों को सदैव याद रखें।आप सब शिक्षक हैं आपकी आपके परिवार बच्चों के साथ समाज के प्रति एक बड़ी जिम्मेदारी है उसको समझें।
Tuesday 17 December 2019
जनवरी 2020 में लखनऊ के धरती पर होगा एक दिवसीय विशाल धरना प्रदर्शन
आज 15 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रदेश संरक्षक गाजी इमाम आला व प्रांतीय अध्यक्ष शिवकुमार शुक्ला व समस्त जिलों के जिला अध्यक्ष व पदाधिकारी गण दारुल सफा लखनऊ में आज की मीटिंग में अनिवार्य रूप से एकत्र हुए मीटिंग में निर्णय लिया गया प्रदेश के पीड़ित शिक्षामित्रों की दिशा को देखते हुए जब से समायोजन रद्द हुआ तब से आज तक उत्तर प्रदेश सरकार का कोई भी संवेदनशील ब्यान नहीं आया अभी तक मौन साधे हुई है संगठन ने निर्णय लिया अगर यही रवैया रहा तो जनवरी 2020 में लखनऊ धरती पर करो या मरो का एक दिवसीय विशाल धरना प्रदर्शन होगा जिसकी तारीख जनवरी के प्रथम सप्ताह में घोषित कर दी जाएगी।
हमारे शहीद साथियों की संख्या लगभग 1800 हो चुकी है इसके बाद भी लगातार मौतों का सिलसिला जारी है प्रतिदिन 1-2 साथी रोज हम सबके बीच से दुनिया छोड़ कर चले जाते हैं।
Friday 6 December 2019
१.२४ शिक्षामित्र केस पर एक अति आवश्यक सूचना गोरखपुर के राजीव कुमार द्वारा
व्यस्तता के कारण हम सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता श्री गौरव यादव जी से गहन विचार विमर्श की विस्तृत जानकारी आप लोगों से साझा नहीं कर पाए थे, जो अब साझा कर रहा हूँ।
गहन चर्चा में बहुत ही प्रमुख जानकारियाँ सामने आयीं जो निम्नवत है।
१. मा. सुप्रीम कोर्ट के समायोजन गलत करार दिए जाने वाले फैसले में मा. उच्चतम न्यायालय ने यह साफ कहा है कि शिक्षामित्रों को समायोजन के पूर्व की स्थिति में बहाल किया जाय, किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने मा.सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए शिक्षामित्रों को साधारण शिक्षामित्र पद पर पूर्ववत कर दिया, जबकि समायोजन पूर्व शिक्षामित्र स्नातक+बीटीसी ट्रेन्ड हो चुके थे। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने स्नातक+बीटीसी ट्रेन्ड का ना तो शिक्षामित्रों को कोई लाभ दिया और ना ही मा.सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अक्षरशः पालन किया।
२. एक लाख चौबीस हजार का केस पूर्णतः प्रेप्रियाॅरिटी एवं अपग्रेडेशन आधारित मामला है, जिसके अन्तर्गत वे सभी शिक्षामित्र आते हैं जो स्नातक+बीटीसी ट्रेंड हो चुके हैं। उनका स्नातक चाहे किसी भी वर्ष का हो, उन सभी को इसमें लाभ मिल सकता है, जो इस केस में याची बने हैं, बन रहे हैं या बनेंगे।
३. प्रेप्रियाॅरिटी का अर्थ यह हुआ कि यदि पूरे देश में कहीं स्नातक+बीटीसी ट्रेंड को वेतनमान दिया गया है तो उसी के आधार पर हम शिक्षामित्रों को भी उसी आधार पर वेतनमान दिया जाय।
४. यह केस अपग्रेडेशन आधारित है जिसका तात्पर्य यह हुआ कि शिक्षामित्र की नियुक्ति भले ही इण्टर बेस पर हुई हो किन्तु लम्बे अनुभव के साथ साथ शिक्षामित्रों की योग्यता भी स्नातक+बीटीसी ट्रेंड की हो चुकी है, इसलिए शिक्षामित्रों को अब उनके लम्बे अनुभव व स्नातक+बीटीसी ट्रेंड के आधार पर वेतन वृद्धि की जाय।
५. चूँकि इस केस में कोई भी लीगल संगठन इनवाॅल्व नहीं है, इसलिए इस केस का आर्डर याची आधारित ही होगा। अर्थात इससे सिर्फ याचियों को ही लाभ मिल सकेगा। जनरल आर्डर इस केस में नहीं आएगा।
कुछ लोग रिट डालने के बाद संगठन बनाकर संगठन के नाम से आई ए डालने की बात कहकर शिक्षामित्रों को गुमराह कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि रिट के बाद बनने वाला संगठन इस रिट के लिए लीगल ही नहीं होगा।
Tuesday 26 November 2019
संजीव बालियान अब आक्रामक रूप से लड़ेंगे शिक्षामित्रों का केस। 4 से 5 माह में हो निर्णय।
मै आज आपके सामने एक सुझाव रख रहा हूँ। पंसद आये तो इस पर अम्ल करे।
किसी भी लडाई को लडने के लिये उस लडाई को लडने के लिये बनाई रणनीति का बहुत योगदान होता है। जैसा कि आप सभी जानते है फिलहाल मे आपकी चार प्रमुख लडाई कोर्ट मे चल रही है।68500,69000, भोला शुक्ला ओर मेरी लडाई ।इनमे से जो लडाई हाईकोर्ट मे चल रही है अगर इनमे आप जीत जाते है तो आप सभी जानते है कि सरकार इनको सुप्रीम कोर्ट लेकर अवश्य जायेगी वो भी इतनी जल्दी हार नही मानेगी। तो इन सब पर हमारी रणनीति क्या होनी चाहिये और जिससे इन सब केसो मे हम जीत दर्ज कर सके।
ओर इसमे हमे कितना समय लेना चाहिये ये लक्ष्य निर्धारित होना चाहिये।जैसे अगर मे कहूँ कि इसमे हमे 4से 5महीने से एक भी दिन ज्यादा नही लेना है।तो हमे रणनीति भी ऐसी बनानी चाहिये।
जिस तरह क्रिकेट मे एक खिलाडी आक्रामक भूमिका मे रहता है और एक डिफेन्सिव होकर खेलता है।जो खिलाडी आक्रामक भूमिका मे रहता है वो विपक्षी खेमे हलचल मचाता रहता है।उसी प्रकार अगर हम इन केसो पर नजर डालै तो इस लडाई मे मेरी भूमिका आक्रामक रूख मे लडने की है तो सब विपक्षी खेमो मे हलचल पैदा होना स्वाभाविक है।मै उनके मस्तष्कि पर प्रहार करूगाँ जिससे वो राजनीति से प्रेरित ना होने पाये उनके सामने ऐसी परिस्थितियो का निर्माण करे जिससे अगर हाईकोर्ट वाले भी केस भी सुप्रीम कोर्ट जाये तो उनके फैसलै भी एक से दो तारीख मे आ जाये।
ओर ये तब होगा जब आप सब एक टीम की तरह काम करोगे। तो सब केसो मे पोजीटिव ही रिजल्ट आयेगा।मै इतने आक्रामक तरीके से खेलना चाहता हूँ जीत निश्चित हो।
और आप भी इन बातो को नजर अंदाज नही कर सकते सब लडाईयो को आप अपनी लडाईयां बना लीजिये क्योकि सबमे आपका ही कुछ ना फायदा होगा ।और 5महीने के लिये सारे निगेटिव विचारो को कुडे के ढेर मे फेक दीजिये फिर देखना उस पोजिटिव सोच सै जो ऊर्जा निकलेगी वो आपको आपके लक्ष्य पर पहुँचाकर ही दम लेगी।
आप ये मत सोचो कि जज क्या फैसला देगे।आप सब ये सोचो कि इन सब केसो का फैसला वो जज तय नही करेगे ब्लकि हमारा कर्म तय करेगा।अपने कर्म के स्तर को इतना ऊँचा कर दीजिये जहाँ से देखने पर जज भी वो फैसला लिखने पर मजबूर हो जाये जो आप चाहता है।और साथ साथ अपनी परीक्षा की तैयारी भी करते रहै जिससे आप पर लगा अयोग्यता का ठप्पा भी हट जाये।
मेरी लडाई आप सबका उत्साह वर्धन भी करूगी ।ओर इसका नुकसान 1%भी नही है ओर फायदा 99% है ।और इसका फायदा उन मृतक शिक्षामित्रो के परिवारो को भी मिलेगा ओर उनकी मदद करने के लिये भी सरकारो को बाध्य होना पडेगा। बाकी आप सभी बुद्धि जीवी है। जो समाज आपको अयोग्य बताता है कम से कम उस समाज आज एक व्यक्ति आपके लियै खडा है कल दस भी खडे हो जायेगे।इसलिये चिन्ता का त्याग करके रण के लिये खडे हो जाये।
अंहकार का त्याग कर दे निजी महत्वाकाँक्षाऔ को 5महीने के लिये छोड दीजिये।फिर देखना निगेटिव कुछ नही होगा हर तरफ से पोजिटिव ही सूचना मिलेगी।इसके लिये आप लोगो को मुझे भी इतना ही स्नैह व प्यार देना पडेगा जो आपने अपने साथियो को दिया है उसमे आप भेद नही करोगो।
Thursday 21 November 2019
68500 कोर्ट अपडेट : ३० - ३३ प्रतिशत कोर्ट केस में आज की सुनवाई का सार।
Gopal Singh 10:05 Shikshak Bharti Pariksha, Shikshamitra Samachar No comments
21/11/2019 :
आज 68500 की सुनवाई लगभग 2:40 पर शुरु हुई ।
सीनियर अधिवक्ता श्री एस के कालिया जी ने बहस शुरु की । कालिया सर लगभग एक घण्टे से अधिक देर तक बहस मेंं 68500 शिक्षक भर्ती कें सभी बिन्दुओं को कोर्ट मेंं रखे । कई आर्डर भी प्रस्तुत किए । कालिया सर कें बहस कें बाद माथुर साहब ने अपनी बहस पूरी की ॥
केस की सुनवाई कल पुनः होगी ।
कल अपने तरफ से L P मिश्रा जी बहस करेंगें ।
अपना पक्ष कें बहस पूरी होने कें बाद विपक्ष कें तरफ से AAG कुलदीप पति त्रिपाठी जी बहस करेंगें ।
कल कें बहस कें दौरान एडवोकेट समीर कालिया एडवोकेट अवधेश शुक्ला जी कोर्ट मेंं विपक्ष कें बहस को नोट करेंगें ।
उसके बाद विपक्ष कें सभी बिन्दुओं का जवाब तैयार कर सीनियर अधिवक्ता S K कालिया जी द्वारा जवाब दिया जाएगा ।
अब दो से तीन हियरिंग कें बाद आर्डर रिजर्व हो जाएगा ।
विपक्षी क़ा जवाब मजबूती से दिया जाएगा ।
सभी याची सहयोग करे । जितने लोग मार्च 2019 कें बाद याची हेतु नाम भेजा हैं सभी का नाम याचिका मेंं जुड़ा हैं । बार बार फ़ोन कर परेशान ना करे ।
हम लोग अग्रिम तैयारी मेंं लगे हैं । आप सभी अपना सहयोग बनाए रखे ताकि अग्रिम तैयारी हो सके । कालिया जी की फ़ीस दी जा सके ।
Tuesday 19 November 2019
69000 शिक्षक भर्ती केस की हियरिंग अपने निर्धारित समय से होगी ।
कल 69K भर्ती में 40-45 बनाम 60-65 मुद्दे की सुनवाई कॉज लिस्ट के मुताबिक अपने निर्धारित समय पर होगी। केस की हियरिंग को लेकर टीम ने अपने वकीलों से परिचर्चा की जिसमे ये बात निकलकर आई कि अपना केस चाहे जितने नम्बर पर लगा हो, चाहे जितने फ्रेश केस या एडिशनल केस हों इनसे 69K केस की सुनवाई पर कोई फर्क नही पड़ेगा।
पासिंग मॉर्क केस अपने निर्धारित समय पर या इससे पहले सुना जाएगा।* साथ ही साथ उन्होंने ये भी बताया कि केस अब अंतिम चरण की ओर है। अब कुछ लोगों को ये लगता है कि जीतेगा तो 40/45 ही। बताते चलें कि बिना संघर्ष और लड़ाई के कुछ भी सम्भव नही है। इसलिये सर्वथा जीत का भृम दिमाग मे न पालें। कोर्ट कब, क्या और कैसे कर दे इसका अंदाज़ा किसी को नही। मुकदमा पैरवी और वकालत पर चलता है। अब कोई भी वकील बिना अग्रिम भुगतान के बहस करने कोर्ट रूम नही आएगा। क्योंकि अब उनको पता है कि केस खत्म होने वाला है,केस खत्म होने के बाद वकीलों को कोई नही पूछता।
वकीलों का साफ कहना है कि पहले पेमेंट (चेक/RTGS) आये इसके बाद कोई तैयारी होगी। इसलिए केस के अंतिम पड़ाव पर आपकी निष्क्रियता टीम पर और केस पर कहीं भारी न पड़ जाए। आज वकीलों को तैयार करना है। अवशेष कम्पाइलेशन बनने हैं, जाहिर है पेमेंट भी आज ही शाम तक करना है। आशा है आप सभी साथी इस महत्वपूर्ण मुद्दे को जरूर समझेंगे।
मुख्यमंत्री जी से मिली समायोजित शिक्षक शिक्षामित्र महासंघ उत्तरप्रदेश की महिला मोर्चा की प्रदेश प्रभारी
उत्तर प्रदेश के समस्त शशंकित व आशंकित शिक्षामित्र साथियों को सादर प्रणाम
साथियों संघर्ष की इसी कड़ी में आज दिनांक 17-1-119 को समायोजित शिक्षक शिक्षामित्र महासंघ उत्तरप्रदेश की महिला मोर्चा की प्रदेश प्रभारी सम्माननिया श्रीमती सुनीता राय जी ने अपने अपने कुशल निर्देशन में गोरक्षपीठ में यशस्वी लोकप्रिय मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी से मिलीं और हमारी समस्त समस्याओं से उन्हें अवगत कराया और दया पूर्वक निदान का निवेदन किया जिसको माननीय ने गंभीरतापूर्वक सुना निराकरण करने का ठोस आश्वासन भी दिया
साथियों ये कटु सत्य है कि हमारी समस्या का स्थायी निदान सम्माननीय मुख्यमंत्री जी ही करेंगे वह भी अतिशीघ्र बाकी कोर्ट कचेहरी ऐसे ही चलती रहेगी आज हमारे संगठन की मातृ शक्ति ने जो कार्य किया है वह वास्तव में अनुकरणीय है और इसकी झलक अतिशीघ्र देखने को मिलेगी
मित्रों हमारा संगठन एवं समस्त सहयोगी पूर्ण रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ देने को युद्धस्तर पर प्रयासरत हैं और सफलता भी मात्र चंद कदम दूर है इसलिए जहाँ इतने दिन तो कुछ दिन और आप लोग धैर्य रखिये सफलता निश्चित ही कदम चूमेगी। पोस्ट पढ़ने के बाद सकारात्मक लोग ही प्रतिक्रिया दें नकारात्मकता का कोई स्थान नहीं है।।इन्ही शब्दों के साथ
आप सब मस्त रहें प्रफुल्लित रहें एवं भविष्य के लिए उत्साहित रहिये।।
Monday 18 November 2019
संजीव बालियान की इस PIL में छुपी है शिक्षामित्रों की सुप्रीम कोर्ट में जीत। पढ़े सभी बिंदु यंहा।
समायोजन निरस्त होने के कारण आपने मेरी पहली पोस्ट मे बिन्दू 1से 6 तक पढे उससे आगे
7 से 11तक पढे।
(7) अनुच्छेद_142_के_तहत_प्रदत्त_शक्तियों_का_प्रयोग_व_आदेश
वकीलों द्वारा यह तर्क देना कि Dharwad तथा प्यारा सिंह केस जैसे निर्णयों से संविदा कर्मियों को भविष्य में स्थायी होने की Legitimate Expectation हो गई, अर्थात इन निर्णयों ने ऐसे कर्मचारियों के मन में भविष्य में स्थायी होने की उम्मीद जगा दी अतः इनको स्थायी कर दिया जाए, मान्य नहीं किया जा सकता है। संविदा कर्मी Legitimate Expectation की थ्योरी की दुहाई नहीं दे सकते, चूँकि नियुक्ति देते समय नियोक्ता ने किसी भी संविदा कर्मी को भविष्य में स्थायी करने का वादा नहीं किया था अतः इस तरह की मांग करना मान्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि नियोक्ता चाह कर भी संविधानिक नियमों के तहत नियुक्ति के समय ऐसा वादा नहीं कर सकता था।
वकीलों द्वारा यह तर्क भी दिया गया कि अनुच्छेद 14 व 16 के तहत संविदा कर्मियों के अधिकारों का हनन हुआ है क्योंकि उनसे भी वह ही कार्य कराया जाता है जो स्थायी कर्मियों द्वारा कराया जाता है जबकि स्थायी कर्मियों को संविदा कर्मियों से कहीं अधिक वेतन/मेहनताना दिया जाता है अतः उनको भी स्थायी किया जाए। हालाँकि यह स्पष्ट है कि संविदा कर्मियों को उतने वेतन/मानदेय का भुगतान किया जा रहा है जो नियुक्ति के उनकी जानकारी में था। ऐसा बिलकुल नहीं है कि निर्धारित मानदेय का भुगतान न किया जा रहा हो। संविदा कर्मी एक अलग ही श्रेणी के कर्मचारी होते हैं व उनको निर्धारित नियमों के अनुसार नियुक्त हुए स्थायी कर्मचारियों के समान नहीं कहा जा सकता है। अगर इस तर्क को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात पर लागू कर भी लिया जाए तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि संविदा कर्मियों के पास ऐसा कोई अधिकार आ गया जिसके द्वारा उनको नियमित सेवा में स्थायी कर दिया जाए क्योंकि स्थायी नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का पालन करते हुए ही की जा सकती है। संविदा कर्मियों को संविधानिक नियमों के अनुपालन में नौकरी पाए स्थायी कर्मियों के समान मानते हुए उनको समायोजित करना असमान लोगों को एक समान मानना होगा जो कि संविधानिक दृष्टि से मान्य नहीं किया जा सकता है। अतः अनुच्छेद 14 व 16 के तहत समायोजन की मांग को खारिज किया जाता है।
यह भी तर्क दिया जाता है कि भारत जैसे देश में जहाँ रोजगार को लेकर इतनी मारामारी है तथा एक बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में हैं अतः स्टेट द्वारा संविदा कर्मियों को स्थायी न करना संविधान के अनुच्छेद 21 की अवहेलना होगी। इस तर्क में ही इस तर्क की काट भी निहित है। भारत एक बड़ा देश है तथा एक बड़ी संख्या में लोग रोजगार व सरकारी सेवा में रोजगार हेतु समान अवसर के इंतजार में हैं। इसी कारण संविधान के मूलभूत ढांचे में अनुच्छेद 14, 16 व 309 को स्थान दिया गया है, ताकि सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ उचित व न्यायसंगत रूप से हों तथा उन सभी को समान मौका मिले जो उस पद हेतु योग्यता रखते हों। अतः अनुच्छेद 21 के तहत एक ख़ास वर्ग के लोगों के लिए समस्त योग्य लोगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इतने कम मानदेय पर कार्य करा कर सरकार ने जबरदस्ती मजदूरी कराई है जिससे अनुच्छेद 23 की अवहेलना हुई है। इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि संविदा कर्मियों ने स्वेच्छा से नियुक्ति हेतु हामी भरी थी तथा नियुक्ति की शर्तों से पूर्ण रूप से वाकिफ थे। परिस्थिति विशेष में न्याय करने के नाम पर हम केवल कोर्ट में न्याय मांगने आए लोगों को वरीयता नहीं दे सकते, हमें उन अनेकों लोगों के अधिकारों को भी ध्यान में रखना है जो सरकारी सेवा में समान अवसर की प्रतीक्षा में हैं। अतः अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए तर्कों को ओवर रूल किया जाता है।
सामान्यतः जब अस्थायी कर्मचारी कोर्ट में याची बन कर आते हैं तब उनकी मांग होती है कि कोर्ट सम्बंधित नियोक्ता को परमादेश (Mandamus) जारी करे कि उक्त कर्मचारियों को स्थायी सेवा में समायोजित कर लिया जाए। अब यह प्रश्न उठता है कि क्या इस बाबत परमादेश जारी किया जा सकता है? इस प्रश्न के उत्तर हेतु Dr. Rai Shivendra Bahadur Vs. The Governing Body of the Nalanda College केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधानिक पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर ध्यान देना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा था, "परमादेश द्वारा किसी अधिकारी/सरकार को कुछ करने के लिए बाध्य करने से पूर्व यह निर्धारित करना होता है कि वास्तव में कोई कानून उस अधिकारी को वह कार्य करने को कानूनी रूप से बाध्य करता है तथा साथ ही साथ परमादेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को भी सिद्ध करना होता है कि यह कार्य कराने हेतु उसके पास कानूनी अधिकार हैं।" उपरोक्त निर्णय इस परिस्थिति में भी कार्य करेगा, जैसा कि साफ़ है कि अस्थायी कर्मियों के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है जिसके तहत वह स्वयं को स्थायी करने की मांग कर सकें अतः उनके पक्ष में इस बाबत कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है/
यहाँ यह साफ़ कर देना भी उचित है कि ऐसे अस्थायी कर्मचारी जिनकी नियुक्ति केवल अनियमित (Irregular) है तथा जो 10 वर्ष से अधिक समय तक बिना मुकदमे बाजी के कार्यरत रहे हैं, की नियुक्ति को नियमित किया जा सकता है। अतः कोर्ट यह आदेश देती है कि ऐसे अनियमित कर्मचारियों को जिन्होंने बिना कोर्ट के दखल के 10 वर्ष से अधिक कार्य किया हो तथा जिनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई हो, को आदेश जारी होने के 6 माह के भीतर केवल एक बार, नियमित करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं। तथा ऐसे स्वीकृत पद जो अभी भी रिक्त हों को नियमित प्रक्रिया द्वारा भरा जाए। (#पैरा_44)
यह भी स्पष्ट किया जाता है कि जिन निर्णयों में इस केस के निर्णय में बताए गए दिशानिर्देशों से हटकर स्थायी करने अथवा समायोजन करने के आदेश दिए गए हैं, उनको अब से नजीर के रूप में प्रयोग नहीं किया जाए (#पैरा_45) वाणिज्य कर विभाग से सम्बंधित मुद्दों में हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिहाड़ी पर कार्यरत कर्मचारियों को अन्य स्थायी कर्मचारी जो अपने निर्धारित संवर्ग में कार्यरत हैं, के समान वेतन व भत्त्ते संविदा पर नियुक्ति के प्रथम दिन से दिए जाएं। साफ़ जाहिर है कि हाई कोर्ट ने उचित निर्णय नहीं दिया। राज्य पर इस तरह का भार डालना हाई कोर्ट के अधिकार में नहीं था खासकर तब जब उनके समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या ऐसे दिहाड़ी पर कार्यरत कर्मचारियों को समान कार्य हेतु समान वेतन दिया जाए जबकि उनको सरकार द्वारा संविदाकर्मी नियुक्त न करने के आदेश के बाद भी नियुक्त किया गया था। हाई कोर्ट अधिक से अधिक यह निर्णय दे सकती थी कि उक्त संविदा कर्मियों को आदेश की तिथि से समान कार्य हेतु स्थायी कर्मियों के समान वेतन दिया जाए। अतः स हिस्से को सुधारते हुए यह निर्णय दिया जाता है कि ऐसे दिहाड़ी कर्मचारियों को उस कैडर की स्थायी सेवा में नियुक्त कर्मचारियों के सबसे निचले ग्रेड के अनुसार वेतन हाई कोर्ट के आदेश की तिथि से दिया जाए। तथा जैसा कि हमने निर्णय दिया है कि कोर्ट किसी भी प्रकार के समायोजन का आदेश नहीं दे सकती हैं अतः हाई कोर्ट के आदेश के उस हिस्से जिसमें उन्होंने वाणिज्य कर विभाग के संविदा कर्मियों को स्थायी करने का आदेश दिया है, को रद्द किया जाता है।
यदि स्वीकृत पद रिक्त हैं तब सरकार उन पदों को नियमित चयन प्रक्रिया द्वारा जल्द से जल्द भरने हेतु आवश्यक कदम उठाएगी, नियमित चयन प्रक्रिया में वाणिज्य कर विभाग, के संविदा कर्मियों (सिविल अपील 3595-3612 के प्रतिवादी) को भी भाग लेने का मौका मिलेगा। उनको अधिकतम आयु सीमा में छूट तथा विभाग में इतने लम्बे समय तक कार्य करने के कारण, कुछ भारांक दिया जाएगा। इस परिस्थिति में पूर्ण न्याय करने हेतु अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इतना ही प्रयोग किया जा सकता है। (#पैरा_46)
8 आदेश_का_सार
★ इस आदेश के द्वारा देश समस्त संविदा कर्मियों को कवर किया गया है।
★ किसी भी संविदा कर्मी को नियमित केवल इस ही केस में आए आदेश के अनुसार किया जा सकता है तथा किसी भी अन्य आदेश को आधार नहीं बनाया जा सकता है। (पैरा 45)
★ संविधान का अनुच्छेद 309 सरकार को सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु नियम बनाने की शक्ति देता है। अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए रूल्स में सरकार सेवा शर्तें, चयन का आधार/तरीका आदि निर्धारित कर सकती है। सरकार द्वारा यदि उपरोक्त नियम बनाए गए हैं तब सरकारी पदों पर चयन केवल इन ही नियमों के अनुसार ही हो सकता है।
★ किसी भी सरकारी पद पर नियुक्ति केवल समस्त योग्य लोगों से विज्ञापन के माध्यम से आवेदन मांग कर व एक उचित चयन समिति द्वारा किसी उचित चयन प्रक्रिया जिससे आवेदन करने वालों की मेरिट की तुलना उचित रूप से हो सके, द्वारा ही की जा सकती है।
★ यदि संसद भी चाहें तब भी संविधान के मूलभूत ढाँचे अर्थात अनुच्छेद 14 व 16 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकारों से खिलवाड़ नहीं कर सकती है। अर्थात संविधान में संशोधन लाकर संविधान के मूलभूत ढांचे को बदला नहीं जा सकता है, ऐसे संशोधन संविधान के मूलभूत ढांचे से अल्ट्रा वायर्स घोषित हो जाएंगे।
★ सरकारी सेवा में समानता के अधिकार का पालन करना आवश्यक है तथा हमारा संविधान क़ानून के राज की बात करता है अतः यह कोर्ट किसी चयन प्रक्रिया में अनुच्छेद 14 व 16 के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
★ सरकारी सेवा में समानता के अधिकार का पालन करना आवश्यक है तथा हमारा संविधान क़ानून के राज की बात करता है अतः यह कोर्ट किसी चयन प्रक्रिया में अनुच्छेद 14 व 16 के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।
★ नियमितीकरण (Regularization) तथा स्थायी करने (Conferring permanence) में अंतर होता है। नियमित करने व स्थायी करने में बहुत फर्क है, इन दोनों को एक ही अर्थ में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
★ नियमितीकरण (Regularization) का अर्थ किसी ऐसी प्रक्रिया सम्बन्धी कमी को दूर करना है जो चयन करते समय चयन प्रक्रिया में रह गई हो।
★ जब नियुक्ति एक्ट/रूल्स, अथवा न्यूनतम योग्यता को दरकिनार करते हुए होती है तब ऐसी नियुक्ति को अनियमित (Irregular) नियुक्ति नहीं अपितु गैर कानूनी (Illegal) नियुक्ति कहते हैं जिसको नियमित नहीं किया जा सकता है।
★ केवल अनियमित नियुक्तियों को नियमित किया जा सकता है, गैर कानूनी नियुक्ति को नियमित करने का प्रश्न ही नहीं होता।
★ समान कार्य हेतु समान वेतन देना अलग बात है परन्तु समस्त संविदा कर्मियों या अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करना अलग बात है। सरकारी पदों पर स्थायी नियुक्ति केवल संविधान के नियमों के तहत ही की जा सकती है।
★ जब नियुक्ति संविदा पर तथा पूर्व निर्धारित मानदेय पर होती है तब संविदा के अंत में नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाती है तथा ऐसे संविदा कर्मी के पास सेवा में बने रहने अथवा नियमित किये जाने का कोई अधिकार नहीं होता है।
★ केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी पद पर कई वर्ष कार्यरत रहा हो तो उसको उस पद पर नियमित होने का अधिकार नहीं मिल जाता है।
★ केवल संवेदना के आधार पर अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
★ नियमितीकरण को नियुक्ति करने का एक तरीका नहीं माना जा सकता है, न ही यह नियुक्ति का एक तरीका हो सकता है।
★ नौकरी चुनते समय सम्बंधित व्यक्ति उस नौकरी की शर्तों को जानता है व समझता है। यह तथ्य कि कोई व्यक्ति किसी पद पर वर्षों से कार्य कर रहा है अतः उसको निकालना न्यायोचित नहीं होगा, मान्य नहीं किया जा सकता है।
★ संविदा कर्मी Legitimate Expectation की थ्योरी की दुहाई नहीं दे सकते, चूँकि नियुक्ति देते समय नियोक्ता ने किसी भी संविदा कर्मी को भविष्य में स्थायी करने का वादा नहीं किया था अतः इस तरह की मांग करना मान्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि नियोक्ता चाह कर भी संविधानिक नियमों के तहत नियुक्ति के समय ऐसा वादा नहीं कर सकता था।
★ संविदा कर्मियों को संविधानिक नियमों के अनुपालन में नौकरी पाए स्थायी कर्मियों के समान मानते हुए उनको समायोजित करना असमान लोगों को एक समान मानना होगा जो कि संविधानिक दृष्टि से मान्य नहीं किया जा सकता है।
★ सुप्रीम कोर्ट की तरह हाई कोर्ट के पास अनुच्छेद 142 जैसी शक्ति नहीं होती है अतः केवल इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी केस में अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए कोई आदेश जारी किया हो, हाई कोर्ट भी उसको नजीर बनाते हुए वैसा ही आदेश जारी नहीं कर सकती हैं।
★ नजीर केवल उन ही आदेशों को बनाया जा सकता है जिसमें किसी कानूनी प्रश्न को हल किया गया हो।
★ अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय केवल क़ानून के दायरे में रह कर किया जा सकता है, हालाँकि राहत को किस प्रकार देना है यह कोर्ट पर निर्भर करता है परन्तु ऐसी कोई भी राहत नहीं दी जा सकती जिससे किसी गैर कानूनी कार्य को बढ़ावा मिले।
★ यदि पूर्व में किसी केस विशेष में सुप्रीम कोर्ट ने किसी संविदा कर्मी को स्थायी किया है तब उस केस के निर्णय के आधार पर कोई अन्य संविदा कर्मी हाई कोर्ट में स्वयं को भी नियमित करने की मांग नहीं कर सकता है।
★ परिस्थिति विशेष में पूर्ण न्याय करने के नाम पर हम केवल कोर्ट में न्याय मांगने आए लोगों को ही ध्यान में नहीं रख सकते, हमें उन अनेकों लोगों के अधिकारों को भी ध्यान में रखना है जो सरकारी सेवा में समान अवसर की प्रतीक्षा में हैं।
★ परमादेश द्वारा किसी अधिकारी/सरकार को कुछ करने के लिए बाध्य करने से पूर्व यह निर्धारित करना होता है कि वास्तव में कोई कानून उस अधिकारी को वह कार्य करने को कानूनी रूप से बाध्य करता है तथा साथ ही साथ परमादेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को भी सिद्ध करना होता है कि यह कार्य कराने हेतु उसके पास कानूनी अधिकार हैं।
★ अस्थायी कर्मियों के पास कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है जिसके तहत वह स्वयं को स्थायी करने की मांग कर सकें अतः उनके पक्ष में इस बाबत कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।
★ ऐसे अस्थायी कर्मचारी जिनकी नियुक्ति केवल अनियमित (Irregular) है तथा जो 10 वर्ष से अधिक समय तक बिना मुकदमे बाजी के कार्यरत रहे हैं, की नियुक्ति का नियमितीकरण (Regularization) किया जा सकता है। अतः कोर्ट यह आदेश देती है कि ऐसे अनियमित कर्मचारियों को जिन्होंने बिना कोर्ट के दखल के 10 वर्ष से अधिक कार्य किया हो तथा जिनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई हो, को आदेश जारी होने के 6 माह के भीतर केवल एक बार, नियमित करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं।
★ यदि स्वीकृत पद रिक्त हैं तब सरकार उन पदों को नियमित चयन प्रक्रिया द्वारा जल्द से जल्द भरने हेतु आवश्यक कदम उठाएगी, नियमित चयन प्रक्रिया में वाणिज्य कर विभाग, के संविदा कर्मियों (सिविल अपील 3595-3612 के प्रतिवादी) को भी भाग लेने का मौका मिलेगा। उनको अधिकतम आयु सीमा में छूट तथा विभाग में इतने लम्बे समय तक कार्य करने के कारण, कुछ भारांक दिया जाएगा। इस परिस्थिति में पूर्ण न्याय करने हेतु अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस हद तक ही प्रयोग किया जा सकता है।
9 आदेश_का_महा_
★★ कोर्ट केवल नियमितीकरण का आदेश दे सकती हैं। स्थायी करने का नहीं।
★★ नियुक्ति के समय प्रक्रिया सम्बन्धी कमी को दूर करना नियमितीकरण (Regularization) कहलाता है।
★★ एक्ट/रूल्स, अथवा न्यूनतम योग्यता को दरकिनार करते हुए हुई नियुक्ति गैर कानूनी (Illegal) नियुक्ति कहते हैं।
★★ अनियमित नियुक्ति को नियमित किया जा सकता है। गैर कानूनी नियुक्ति को नहीं।
★★ सरकारी पदों पर नियुक्ति अनुच्छेद 14, 16 व 309 के तहत केवल खुली भर्ती द्वारा हो सकती हैं।
★★ अनुच्छेद 14, 16 व 309 संविधान के मूलभूत ढाँचे का हिस्सा हैं।
★★ संसद संविधानिक संशोधन लाकर भी संविधान के मूलभूत ढांचे को बदल नहीं सकती।
🔟 शिक्षा_मित्र_केस_से_लिंक
★ शिक्षा मित्र संविदा कर्मी मात्र हैं।
★ नियुक्ति के समय उनको अपनी नियुक्ति की शर्तों का ज्ञान था।
★ शिक्षा मित्रों की प्रथम नियुक्ति संविधानिक नियमों अर्थात अनुच्छेद 14, 16 व 309 के अनुसार नहीं हुई थी।
★ शिक्षा मित्रों का चयन सर्विस रूल से नहीं हुआ था।
★ नियुक्ति के समय शिक्षा मित्र सर्विस रूल में विहित न्यूनतम योग्यता (बीटीसी + स्नातक) नहीं रखते थे।
★ शिक्षा मित्रों की नियुक्ति के समय आरक्षण के नियमों का पालन नहीं हुआ था। जिस जाति का ग्राम प्रधान था उस ही जाति का शिक्षा मित्र नियुक्त कर लेना आरक्षण नियमों का पालन नहीं कहा जा सकता है।
★ शिक्षा मित्रों की प्रथम नियुक्ति अनियमित नहीं अपितु गैर कानूनी थी।
★ गैर कानूनी नियुक्ति को नियमित नहीं किया जा सकता है।
11 कुछ शिक्षा मित्र नेता कहते हैं कि समायोजन बाधा नहीं है बल्कि टीईटी बाधा है। मैं कहता हूँ कि टीईटी तो आप लोग हो सकता है कैसे भी पास कर लें, वास्तविक बाधा समायोजन है। आपका समायोजन नहीं हो सकता है। टीईटी पास कर के बीटीसी प्रशिक्षितों से प्रतिस्पर्धा कर के ही खुली भर्ती के माध्यम से ही आ सकते हो।
#ऐसा भी नही है कि इस समस्या का समाधान है ओर शिक्षामित्र नियमित भी हो सकता है दरअसल इसको पढने के बाद आपको ये बहुत बडी समस्या दिखाई देगी।परन्तु इसका समाधान उतना बडा नही है।
अगली पोस्ट मे इसका समाधान भी लिखूगाँ ।मेरी पोस्ट पढते रहये।और चिन्ता तो बिल्कुल ही ना करे।मस्त रहे।
संजीव कुमार बालियान
8433029010
Saturday 16 November 2019
भोला शुक्ला की याचिका को लेकर ये भी जानना जरूरी है शिक्षामित्रों के लिए। कुछ छुपा क्या अंधेरे में?
सभी शिक्षामित्रों को सूचित किया जाता है कि वर्तमान समय मे भोला शुक्ला की 124 वाली रिट मे याची बनने हेतु हो हल्ला मचा हुवा है।
आप सभी सावधान व सतर्क रहें क्योंकि भोला शुक्ला की रिट मे शासनादेश को चैलेन्ज किया गया है और यदि शिक्षामित्र पद मे वापसी का शासनादेश निरस्त करके सुप्रीम कोर्ट पैराटीचर का दर्जा देती है तो इससे सभी शिक्षामित्र लाभाम्बित होंगें।और यदि कदाचित आवश्यकता पड़ी तो आपका संगठन अपने स्तर से एवं अपने संसाधन से सुप्रीमकोर्ट जाकर आदेश को सभी के हेतु कवर्ड कराकर लायेगा।
बस आप लोग शान्ती से सुखद फैसले का इन्तजार करें व व्यर्थ के याची हो हल्ले से दूर रहें। क्योंकि याची के चक्कर मे मुकदमा कमजोर हो सकता है और शिक्षामित्र संहारक/चन्दाचोर तो यही चाहते हैं जबकि यह अन्तिम लड़ाई सही व सटीक ट्रेक पर चल रही है।
हम सभी भोला शुक्ला व उनकी टीम से लगातार सम्पर्क मे हैं यदि न्यायालय ने न्याय किया तो आपसे वादा है आप सभी को वही लाभ मिलेगा जो फैसले मे होगा ।
124 की याचिका पर कल से ही बडे बडे सूरमाओं ने अपनी ज्ञान की गंगा उडेल दी है कुछ लोग ऐसे ज्ञानी है जो कल तक याची बनाकर सम्मान दिला रहे थे और कुछ नये आज पैदा हो गये जो पूरी काऊंटर की कापी देखे ही ज्ञान दे रहे है *काऊंटर कुल 16 पेजों में दाखिल किया है सरकार ने और महाज्ञानी लोग सिर्फ और सिर्फ 9 पेज का रूपांतरण करके लोगों को गुमराह कर रहे हैं* भयभीत कर रहे है यह एक विशेष राजनीति के तहत हो रहा है जो दिग भ्रमित कर रहे है कारण शिक्षा मित्रों का भला न हो जाये यदि हो गया तो दुकानदारी बंद हो जायेगी आप सब गौर करना ऐसा विरोध कौन और किस कारण कर रहा है समझ में आ जायेगा इसे आपको स्वयं मूल्यांकन करना है आप सब सबसे पहले पूर्ण काऊटर की प्रति मांगे वह भी वर्जीनल आपको स्वतः पता चल जायेगा कि किस तरह तथ्यों को तोड़ मडोर कर भ्रमित किया जा रहा है।
आप सब निश्चित रहे आपका दिन बहुरने वाला है पूरे प्रदेश में आपकी काबिलियत सामने आने वाली है ऐसे लोगों से सावधान रहे जो अनायास ही अपनी सोंच से आपको गुमराह कर रहे हैं।
Friday 15 November 2019
1.24 शिक्षामित्र केस में सरकार के द्वारा लगाए काउंटर में फिर से वही बात। भोला शुक्ला का न दे साथ।
योगी सरकार का 124 प्रकरण पर जो हलफनामा लगाया है उसमें रोना यह है कि हमने सुप्रीम कोर्ट के आदेश में इन्हें अध्यापक से शिक्षामित्र के पद पर पदस्थ कर दिया और 3500/- से बढ़ाकर 10,000/- इनका मानदेय कर दिया है, इसलिए इनकी याचिका पोषणीय नहीं है, अतः इसे खारिज कर दिया जाए?
यह शत प्रतिशत सत्य है कि यह याचिका केवल छ: पीड़ित शिक्षामित्रो ने मिलकर याचिका डाली है और पैसा 124000/- पीड़ित शिक्षामित्रो के जेब से निकलवाया जा रहा है, यदि वास्तव में भोला प्रसाद शुक्ला व अन्य की टीम ईमानदारी से काम करती हैं आज कोई वरिष्ठ वकील खड़ा करवा रिज्वांइडर लगाने के बाद बहस करता लेकिन स्वयं 04 सप्ताह का समय मांग कर मुकदमा अब 2020 में दो- तीन सुनवाई के बाद अन्तिम फैसला आयेगा, फैसला चाहे जो भी आये?
1.24 शिक्षामित्र केस की आज की अपडेट : 15 नवंबर 2019
आप सभी को ज्ञात था कि आज सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों के 124000 शिक्षामित्रों को अपग्रेड वेतनमान दिलाने हेतु एक केस चल रहा है जिसे भोला शुक्ला देख रहे हैं। आज 15 नवंबर 2019 को इस केस की अहम सुनवाई थी।
अहम इसलिए क्योंकि आज कोर्ट में सरकार, MHRD मंत्रालय और NCTE द्वारा अपना-अपना काउंटर दाखिल किया जा चुका था। आज की सुनवाई में इन काउंटर का कोर्ट संज्ञान लेता और उसके आधार पर आगे की कोर्ट में केस की मजबूती पर थोड़ा प्रकाश पड़ता। लेकिन आज दुर्भाग्यवश फिर से शिक्षामित्रों को निराशा हाथ लगी और अब इस कोर्ट केस की अगली डेट 16 दिसंबर कर दी गई है। एक महीने बाद अब इस केस की सुनवाई होगी।
शिक्षामित्रों के इस केस में इतनी लंबी-लंबी तारीखों का पढ़ना शिक्षामित्रों को और भी हताश कर रहा है। जहां एक तरफ शिक्षामित्र अपनी आर्थिक स्थितियों से लड़ते हुए जीवन यापन कर रहा है, वही आशा की किरणों से देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय कि दहलीज़ से न्याय की उम्मीद कर रहा है। लेकिन फिर से एक माह बाद इस केस की सुनवाई होगी और तब कहीं जाकर इस केस की मजबूती पर कुछ प्रकाश सामने आएगा। तब तक शिक्षामित्रों को फिर से धैर्य से काम करना होगा।
इस केस को लेकर शिक्षामित्रों के बीच याची बनने और न बनने जैसी स्थिति आई हुई है। जिसमें एक संगठन शिक्षामित्रों को याची बनने के लिए तो दूसरा संगठन न बनने के लिए कह रहा है। शिक्षामित्रों को सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस केस में चंदा देने से रोकने के लिए या फिर गलत तरीके से पैसे लेने वाले लोगों से सावधान करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। अब अगली 16 दिसंबर को ही इस केस की सुनवाई होगी। तभी स्थिति साफ होगी कि आखिरकार शिक्षामित्रों के इस केस में शिक्षामित्रों को राहत मिलने की कितनी उम्मीद है और उनको याची बनना चाहिए या नहीं। आज के कोर्ट केस में विस्तार से जानने के लिए अभी कोर्ट ऑर्डर को अपलोड होने का इंतजार करना होगा।
ऑर्डर अपलोड होने के बाद आज के केस की विस्तृत जानकारी आपको इस वेबसाइट के माध्यम से दे दी जाएगी। आप इस पोस्ट को अधिक से अधिक दोस्तों के साथ शेयर करें।
Friday 27 July 2018
मूल विद्यालय वापसी के इस फॉर्म पर शिक्षामित्रों ने उठाई आपत्तियां Shiksha mitra Latest News
Gopal Singh 02:01 Basic Shiksha News, Document, Shikshamitra Samachar No comments
विभिन्न संगठनों की मांग के बाद शिक्षा मित्रों को उनके मूल विद्यालय भेजने का आदेश शासन ने कर दिया है जिसके उपरांत प्रत्येक समायोजित शिक्षामित्र को अपने विकल्प के आधार पर विद्यालय का चयन करना होगा कि वह वर्तमान विद्यालय में पढ़ाना चाहते हैं या मूल विद्यालय में। महिला शिक्षामित्र को इस में एक अतिरिक्त विकल्प देते हुए उन्हें अपनी ससुराल या पति के कार्यक्षेत्र के पास विद्यालय चुनने का भी अवसर दिया जाएगा।
सरकार के इस आदेश की समीक्षा विभिन्न शिक्षा मित्रों ने भिन्न-भिन्न तरीके से की है जिसके अंतर्गत इसे शिक्षा मित्रों के प्रति कोई कूटनीति चाल बता कर उन्हें शिक्षामित्र पद पर पुनः लौटाकर 2019 में शिक्षामित्र पद खत्म करके उन्हें हमेशा के लिए बाहर का रास्ता दिखाने की चाल बताते है तो किसी शिक्षा मित्र ने सरकार की इस नीति का, इस आदेश का स्वागत किया है और धन्यवाद दिया है उन्होंने 100 से डेढ़ सौ किलोमीटर दूरी तय करने वाले शिक्षामित्रों की पीड़ा को समझा और उन्हें उनके मूल विद्यालय भेजने की व्यवस्था कर उन को राहत दी।
आपको बता दें जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा इस के आदेश दे दिए गए हैं और समायोजित शिक्षामित्रों की जानकारी प्राप्त की जा रही है और उनसे मूल विद्यालय वापसी के लिए फॉर्म भरवाया जा रहा है। लेकिन यह फॉर्म अलग अलग जिलों में अलग - अलग देखने को मिला है। इसमें से एक फॉर्म की प्रति नीचे दे रखी हैं जिसमें घोषणा पत्र में स्पष्ट लिखा है की समायोजित शिक्षामित्र अपनी स्वेच्छा से अपने मूल तैनाती वाले विद्यालय में शिक्षामित्र पद पर वापस होना चाहता है यहां से शिक्षा मित्रों का तर्क यही है कि इस घोषणा में मूल विद्यालय के साथ-साथ मूल पद शिक्षामित्र को क्यों जोड़ा गया है ?
12 अगस्त को हाईकोर्ट में अवमानना वाले केस की सुनवाई होनी है, जिसके अंतर्गत राज्य सरकार को अपना काउंटर दाखिल करना है। इस आदेश के अधीन शिक्षामित्रों ने आरोप लगाया है कि सरकार जबरन शिक्षामित्रों को उनके मूल पद पर भेज रही है। तर्क यही है कि शिक्षामित्र चाहे वर्तमान विद्यालय में रहे या मूल विद्यालय में जाए, उसका यह फॉर्म भरना अनिवार्य होगा।
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Thursday 26 July 2018
असमायोजित महिला शिक्षा मित्रों को भी मिली राहत। वे भी पा सकेंगी ससुराल के पास नियुक्ति।
Gopal Singh 22:00 Basic Shiksha News, News Paper Cutting, Shikshamitra Samachar No comments
असमायोजित महिला शिक्षा मित्रों को भी एक राहत भरी खबर है। सरकार ने समायोजित शिक्षामित्रों को उनके मूल विद्यालय पर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। उसी दौरान असमायोजित महिला शिक्षा मित्रों ने भी अपने मनपसंद विद्यालय जहां उनका ससुराल या पति का कार्यक्षेत्र है नियुक्ति की मांग की थी। असमायोजित शिक्षामित्र संगठन के प्रयास से शासन ने इस बात को भी स्वीकार करते हुए सहमति दिखा दी है कि अब असामाजिक महिला शि क्षामित्र को भी ससुराल के पास स्कूल में तैनाती मिलेगी।
30000 ऐसे शिक्षामित्र वंचित हो गए थे जिनका समायोजन नहीं हो पाया था। वह अपने मूल विद्यालय में ही पढ़ा रहे थे। उनमें से महिलाएं अपने मूल विद्यालय बढ़ाते हुए विवाहित हो गई लेकिन ससुराल के पास नजदीक विद्यालय में नहीं जा पाई। उनके लिए सुनहरा अवसर है। वे अपना विद्यालय बदल सकती हैं।
आपको बता दें कि सामाजिक शिक्षा मित्र अपने मूल विद्यालय से 100 से डेढ़ सौ किलोमीटर दूरी पर पढ़ाने के लिए जाते हैं। इसकी मांग शिक्षा में संगठन ने शासन से कई बार की कि उन्हें उनके मूल विद्यालय पर भेज दिया जाए ताकि वह मात्र ₹10000 के अल्प मानदेय में आवागमन के व्यय से बच सकें और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य लाभ भी मिल सके। इसके अंतर्गत महिला शिक्षा मित्रों को एक अत्रिरिक्त विकल्प और दिया था कि वह अपने मूल विद्यालय के अतिरिक्त ऐसे विद्यालय को भी चयनित कर सकती हैं जहां उनकी ससुराल हो या उनके पति का कार्य क्षेत्र हो लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पति का मूल निवास प्रमाण पत्र लगाना अनिवार्य होगा। यह शासनादेश केवल समायोजित शिक्षामित्रों के लिए था। लेकिन अब शासन ने असमायोजित शिक्षामित्रों में महिलाओं को यह अवसर देने की सहमति दिखा दी
शिक्षामित्र न्यूज़ |
shiksha mitra news |
Tuesday 24 July 2018
68500 शिक्षक भर्ती का परीक्षाफल पूर्व शासनादेश के अनुसार होगा जारी। High Court Updates on Cut-Off Case
Gopal Singh 18:29 Basic Shiksha News, Court Updates, Shikshamitra Samachar No comments
पूर्व शासनादेश के अनुसार ही घोषित होगा परिणाम
बीटीसी अभ्यर्थियों द्वारा हाईकोर्ट में डाली गई याचिका के अनुसार हाईकोर्ट ने सरकार की 33 परसेंट कट ऑफ वाले शासनादेश पर स्टे दे दिया है। बीटीसी अभ्यर्थियों का कहना है कि किसी भी भर्ती के नियम को विज्ञापन के बाद नहीं बदला जा सकता है जबकि सरकार ने विज्ञापन से पूर्व शिक्षक भर्ती परीक्षा का कट ऑफ 40 और 45 परसेंट रखा था। फिर शिक्षामित्रों के प्रतिनिधि मंडल द्वारा अनुग्रह करने पर परीक्षा से कुछ दिन पहले ही कट ऑफ संशोधित करके 30 और 33 परसेंट कर दिया गया। इससे शिक्षामित्रों को बहुत राहत मिली और कई शिक्षामित्र आसानी से उत्तीर्ण हो गई। लेकिन बीटीसी अभ्यर्थियों को यह गवारा ना हुआ और उन्होंने इस संशोधित शासनादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका डाल दी। कोर्ट ने भी बीटीसी अभ्यर्थियों के साथ और उनकी तर्क से सहमत होकर सरकार के 33 परसेंट वाले शासनादेश पर कोर्ट के अंतिम फैसले तक स्टे दिया है। कोर्ट ने सरकार को 4 हफ्तों में अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
सोचने की बात यह है की शिक्षक भर्ती परीक्षा का परिणाम 30 जुलाई के बाद आना था लेकिन अब 4 हफ्तों का समय मिलने के बाद क्या परीक्षा परिणाम समय से जारी हो सकेगा। क्योंकि कौन पास होगा या कौन फेल यह कट ऑफ फाइनल होने के बाद ही तय होगा।
सोचने की बात यह है की शिक्षक भर्ती परीक्षा का परिणाम 30 जुलाई के बाद आना था लेकिन अब 4 हफ्तों का समय मिलने के बाद क्या परीक्षा परिणाम समय से जारी हो सकेगा। क्योंकि कौन पास होगा या कौन फेल यह कट ऑफ फाइनल होने के बाद ही तय होगा।
लेकिन सरकार ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हुए कहां है कि शिक्षक भर्ती परीक्षा का परिणाम पूर्व के शासनादेश के अनुसार ही 33% कटऑफ के आधार पर समय से जारी कर दिया जाएगा। एक तरफ जहां शिक्षामित्रों की सरकार से लगातार कटऑफ हटाने का प्रयास कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीटीसी अभ्यर्थी कटऑफ बनवाने का प्रयास कर रहे हैं।
सहायक अध्यापकों की भर्ती परीक्षा मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 9 जनवरी 2018 के शासनादेश के अनुसार ही परिणाम घोषित करने के अंतरिम आदेश दिए हैं। न्यायालय ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब भी मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने दिवाकर सिंह की याचिका पर दिए। याची के अधिवक्ता हिमांशु राघवे ने बताया कि 9 जनवरी के शासनादेश के साथ जारी की गई गाइडलाइन्स में लिखित परीक्षा के लिए न्यूनतम मार्क्स सामान्य व आरक्षित वर्ग के लिए क्रमशः 45 व 40 रखा गया था। जिसे 21 मई 2018 को जारी शासनादेश द्वारा संशोधित करते हुए, क्रमशः 33 व 30 कर दिया गया। वर्तमान याचिका 21 मई के शासनादेश को चुनौती दी गई थी।
High Court Order |
कोर्ट ने दिया शिक्षामित्रों को तगड़ा झटका। शिक्षक बनने के लिए अभी और करना होगा इंतजार। High Court Decision
Gopal Singh 09:34 Basic Shiksha News, Court Updates, Shikshamitra Samachar No comments
आज दिनांक - 24 जुलाई को लखनऊ खण्ड पीठ की सिंगल बेंच ने प्रशिक्षु बीटीसी वालों की तरफ से 45 व 33 फीसदी पर विवादास्पद शासनादेश कह करके कि विज्ञापन के बाद कट आफ कम नही की जा सकती हैं, उक्त को लेकर लिखित परीक्षा में लागू करने को दाखिल की गई थी, जिस प्रकार कोर्ट ने संज्ञान मे लेते हुए उक्त 33 फीसदी वाले शासनादेश के कट आफ रोक लगाते हुए यूपी सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया हैं, उक्त आदेश से टीईटी पास शिक्षामित्रों के लिए जोर झटका लग सकता हैं और बीटीसी वालों के लिए बहुत बड़ी कोर्ट ने राहत दी हैं, विस्तृत व प्रमाणित खबर कोर्ट आदेश की प्रति प्राप्त होने के बाद।
High Court Order |
Monday 23 July 2018
जिला अलीगढ़ में भी शिक्षामित्रों को मूल विद्यालय भेजने हेतु मांगी सूचना का आदेश एवम प्रपत्र
Gopal Singh 10:25 Basic Shiksha News, District Order, Shikshamitra Samachar No comments
शासन के निर्देशानुसार जिला अलीगढ़ में भी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को दिनांक 23 जुलाई 2018 तक सभी समायोजित शिक्षामित्रों की सूचना प्रपत्र पर मांगी है। शिक्षामित्रों को मूल विद्यालय भेजने हेतु यह प्रक्रिया समयबद्ध है। इसलिए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय ने किसी भी प्रकार की शिथिलता न बरतने का भी निर्देश दिया है।
संकुल प्रभारी द्वारा निम्न सूचना को प्रपत्र में भरकर जल्द से जल्द जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय में उपलब्ध कराने का निर्देश हुआ है
Aligarh BSA order |
Mool Vidhyalay form |